चम्पारण के पुरातात्विक अवशेषों का विश्लेषण: एक अध्ययन

Authors(1) :-कुमारी दीपा

महाकाव्य से लेकर आज तक चम्पारण का इतिहास गौरवपूर्ण एवं महत्वपूर्ण रहा है। पुराण में वर्णित है कि यहाँ के राजा उत्तानपाद के पुत्र भक्त धु्रव ने यहाँ के तपोवन नामक स्थान पर ज्ञान प्राप्ति के लिए घोर तपस्या की थी। एक और चम्पारण की भूमि देवी सीता की शरणस्थली होने से पवित्र है वहीं दूसरी और आधुनिक भारत में गाँधीजी का चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास का अमूल पन्ना है। राजा जनक के समय यह मिथिला (तिरहुत) प्रदेश का अंग था। लोगों का ऐसा विश्वास है कि जानकीगढ़ जिसे चानकीगढ़ भी कहा जाता है, राजा जनक के मिथिला प्रदेश की राजधानी थी जो बाद में छठी सदी ईसापूर्व में वज्जी के साम्राज्य का हिस्सा बन गया। भगवान बुद्ध ने यहाँ अपना उपदेश दिया था जिसकी याद में तीसरी सदी ईसापूर्व में प्रियदर्शी अशोक स्तम्भ लगवाए और स्तूप का निर्माण कराया। गुप्त वंश तथा पाल वंश के पतन के बाद चम्पारण कर्नाट वंश के अ धीन हो गया मुसलमानों के अधीन होने तक तथा उसके बाद भी यहाँ स्थानीय क्षत्रपों का सीधा शासन रहा। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के समय चम्पारण के ही एक रैयत एवम् स्वतंत्रता सेनानी राजकुमार शुक्ल के बुलावे पर महात्मा गाँधी अप्रैल 1916 ई0 में मोतिहारी आए और नील की फसल के लागू तीनकठिया खेती के विरोध में सत्याग्रह का पहला सफल प्रयोग किया। आजादी के लड़ाई में यह नए चरण की शुरूआत थी। बाद में भी बापू कई बार यहाँ आए। अंग्रेजों ने चम्पारण को सन् 1966 में ही स्वतंत्र इकाई बनाया था। लेकिन 1971 में इसका विभाजन कर पूर्वी तथा पश्चिमी चम्पारण बना दिया गया।

Authors and Affiliations

कुमारी दीपा
विश्वविद्यालय इतिहास विभाग, बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार), भारत

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Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 2 | March-April 2022
Date of Publication : 2022-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 40-44
Manuscript Number : GISRRJ22526
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

कुमारी दीपा, "चम्पारण के पुरातात्विक अवशेषों का विश्लेषण: एक अध्ययन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 2, pp.40-44, March-April.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ22526

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