Manuscript Number : GISRRJ225479
बदलते मूल्य और धूमिल की कविता
Authors(1) :-डॉ राकेश चंद्र
समकालीन कविता में सुदामा पांडे ‘धूमिल’ राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, विसंगतियों के विरूद्ध रचना करने वाले रचनाकार हैं। इन्होंने समकालीन काव्यान्दोलन को कथ्य और शिल्प के धरातल पर परम्परागत और रूढ़िगत रचना प्रक्रिया का विरोध किया तथा निष्ठा, विवेक और औचित्यपूर्ण काव्य रचना की। यह स्वाभाविक बात है कि परम्परागत विरोध के लिए पूर्ववर्ती पीढ़ी को कुछ स्तरों पर नकारकर, नये-नये आयाम स्थापित करने पड़ते हैं इस पूरी प्रक्रिया में विरोध करने वाले को अन्तर्विरोधों का भी शिकार होना पड़ता है। इस तथ्य को भी नकारा नहीं सकता कि इन अन्तर्विरोधों को ऐतिहासिक पीठिका द्वारा ही मूल्यांकित कर सकते हैं। जैसे धूमिल के ही अनुसार
डॉ राकेश चंद्र
एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, जे वी जैन कालेज, सहारनपुर , भारत।
- धूमिल, कल सुनना मुझे, युग बोध प्रकाशन 1977, पृ0 1
- ‘विश्वम्भर नाथ उपाध्याय, समकालीन सिद्धान्त और साहित्य, दिल्ली
- मेरूमिलन 1976, पृ0 189
- धूमिल, कल सुनना मुझे, युग बोध प्रकाशन 1977, पृ0 44
- धूमिल, कल सुनना मुझे, पृ0 63, वर्ष 1972, राजकमल प्रकाशन
- वहीं, पृ0 44
- वहीं, पृष्ठ 80
- वहीं पृष्ट 40
- धूमिल, संसद से सडक तक, राजकमल 1972, पृ0 109
- वहीं, पृ0 38
- हुकुम चन्द राजपाल, समकालीन बोध और धूमिल का काव्य दिल्ली कोणार्क प्रकाशन 1980, पृ0 64
- धूमिल, कल सुनना मुझे, युग बोध प्रकाशन 1977, पृ0 49
Publication Details
Published in : Volume 6 | Issue 5 | September-October 2023
Date of Publication : 2023-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 32-36
Manuscript Number : GISRRJ225479
Publisher : Technoscience Academy
ISSN : 2582-0095
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URL : https://gisrrj.com/GISRRJ225479



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