Manuscript Number : GISRRJ225616
अभिनवगुप्त और कबीर के दर्शन में तुलनात्मक भक्ति-विमर्श
Authors(1) :-रवीन्द्र कुमार पंथ काश्मीर शैवदर्शन और कबीर दर्शन में भक्ति की अद्वैतता स्पष्ट रूप में दृष्टिगोचर होती है। अभिनवगुप्त ने भक्ति की जिस धारा का कथन किया वैसा ही कबीर भी करते दृष्टिगोचर होते हैं। शैवदर्शन भक्ति तत्त्व को भी दार्शनिक दृष्टि देनें मंे सफल है यद्यपि यह स्वीकारा गया है कि भक्ति एक संवेगात्म अनुभूति है, दार्शनिक नही, तथापि यह दार्शनिक लक्ष्यों को स्वीकार कर ही प्रवृत्त होती है। इसलिए इसे अंशतः दार्शनिक भी कहा जा सकता है। कबीर दर्शन में तो भक्ति ही ज्ञान व योग से समन्वित होने के कारण दार्शनिक ही है। इसलिए कबीर भी भक्ति का प्रतिपादन दोनों ही रूप में करते हैं- संवेगात्मक अथवा रागात्मक अनुभूति और दार्शनिक अनुभूति। अतः यह कहा जा सकता है भक्ति विषयक विवेचन में कबीर को अभिनवगुप्त के निकट पाया जाता है जो भारतीय परंपरा में ज्ञान की क्रमबद्धता को विवेचित करता है।
रवीन्द्र कुमार पंथ अभिनवगुप्त, कबीर, दर्शन, भक्ति,शैवदर्शन, अनुभति,भारतीय। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 6 | November-December 2022 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत-विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, एवं सहा. प्राध्यापक (संस्कृत) पं. जे.एल. एन. महाविद्यालय बांदा
Date of Publication : 2022-12-20
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 89-98
Manuscript Number : GISRRJ225616
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ225616