Manuscript Number : GISRRJ22562
पाणिनीय व्याकरण की लोकरञ्जकता
Authors(1) :-डाॅ सत्यप्रिय आर्य आचार्य पाणिनि द्वारा प्रणीत अष्टाध्यायी एवं उस पर उपलब्ध महाभाष्य एवं काशिका आदि प्रमुख सभी व्याकरण के व्याख्यान ग्रन्थों में लोक प्रामाण्य को अत्यधिक महत्व दिया गया है। आचार्यों का स्पष्ट मत है जो सिद्धान्त, विचार अथवा व्यवहार लोक के द्वारा पुष्ट या प्रमाणित नहीं हैं, उनका अस्तित्व समाज में बहुत अधिक समय तक नहीं रहता। इसीलिये महाभाष्यकार आदि सभी वैयाकरण किसी शास्त्रीय समस्या का समाधान करते हुये तब तक पूर्ण रूप से सन्तुष्ट नहीं होते जब तक कोई लौकिक उदाहारण न प्रस्तुत कर लें। इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिये अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। आचार्य के इसी लोक आकर्षण को स्पष्ट करने का एक विनम्र प्रयास इस पत्र के माध्यम से किया जा रहा है।
डाॅ सत्यप्रिय आर्य अन्वर्थविज्ञान, लोक-प्रामाण्य, भाष्य, वार्तिक, अपवाद, उत्सर्ग, शिष्ट- प्रमाण, न्याय। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 6 | November-December 2022 Article Preview
सहायक प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू, जम्मू-कश्मीर, भारत।
Date of Publication : 2022-11-06
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Page(s) : 14-25
Manuscript Number : GISRRJ22562
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ22562