पाणिनीय व्याकरण की लोकरञ्जकता

Authors(1) :-डाॅ सत्यप्रिय आर्य

आचार्य पाणिनि द्वारा प्रणीत अष्टाध्यायी एवं उस पर उपलब्ध महाभाष्य एवं काशिका आदि प्रमुख सभी व्याकरण के व्याख्यान ग्रन्थों में लोक प्रामाण्य को अत्यधिक महत्व दिया गया है। आचार्यों का स्पष्ट मत है जो सिद्धान्त, विचार अथवा व्यवहार लोक के द्वारा पुष्ट या प्रमाणित नहीं हैं, उनका अस्तित्व समाज में बहुत अधिक समय तक नहीं रहता। इसीलिये महाभाष्यकार आदि सभी वैयाकरण किसी शास्त्रीय समस्या का समाधान करते हुये तब तक पूर्ण रूप से सन्तुष्ट नहीं होते जब तक कोई लौकिक उदाहारण न प्रस्तुत कर लें। इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिये अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। आचार्य के इसी लोक आकर्षण को स्पष्ट करने का एक विनम्र प्रयास इस पत्र के माध्यम से किया जा रहा है।

Authors and Affiliations

डाॅ सत्यप्रिय आर्य
सहायक प्राध्यापक, संस्कृत विभाग, जम्मू विश्वविद्यालय, जम्मू, जम्मू-कश्मीर, भारत।

अन्वर्थविज्ञान, लोक-प्रामाण्य, भाष्य, वार्तिक, अपवाद, उत्सर्ग, शिष्ट- प्रमाण, न्याय।

  1. पारिभाषिकः, आचार्य प्रद्युम्नः, राम लाल कपूर ट्र्स्ट, रेवली, सोनीपत, हरियाणा, 2014
  2. व्याकरणशास्त्रीय लोकन्याय रत्नाकर, डा. भीमसिंह वेदलंकार, पेनमेन पब्लिशर्स, शक्ति नगर, दिल्ली-7
  3. पाणिनीय अष्टाध्यायी, राम लाल कपूर ट्र्स्ट, रेवली, सोनीपत, हरियाणा, 2018
  4. पाणिनीय शब्दानुशासनम्‍, सत्यानन्दवेदवागीश:, विजयकुमार गोविन्दराम हासानन्द, 4408, नई सडक, दिल्ली-110006, वि. सं. 2060
  5. महाभाष्य, पतंजलि, (प्रदीप-कैयट) गुरुकुल झज्जर, हरियाणा, वि. सं. 2020
  6. काशिका, वामन-जयादित्य, चौखम्बा संस्कृत पुस्तकालय, वाराणसी, 1954
  7. पाणिनिकालीन भारतवर्ष, डा. वासुदेवशरण अग्रवाल, चौखम्भा विद्याभवन, वाराणसी-1
  8. वाक्यपदीयम्‍, द भारतीय विद्या प्रकाशन, नई दिल्ली, वि. सं 2066
  9. पाणिनीय शिक्षा, मोती लाल बनारसी दास, नई दिल्ली-11007, 2005
  10. पारिभाषिक, (हिन्दी व्याख्या) स्वामी दयानन्द सरस्वती, आर्ष साहित्य प्रचार मण्डल, नई दिल्ली,1998
  11. पतंजलिकालीन भारत, डा. प्रभुदयाल अग्निहोत्री, बिहार राष्ट्रभाषा, पटना, 1963
  12. पाणिनि : ए सर्वे आफ रिसर्च, जार्ज कार्डोना, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, 1980
  13. व्याकरणशास्त्रे लौकिकन्यायानामुपयोगः, रामकिशोर शुक्ल, संपूर्णा. सं. विश्वविद्यालय, वाराणसी, 1992
  14. संस्कृत व्याकरणशास्त्र का इतिहास, (भाग-1-3) पं. युधिष्ठिर मीमांसक, बहालगढ, सोनीपत, सं 2030

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 6 | November-December 2022
Date of Publication : 2022-11-06
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 14-25
Manuscript Number : GISRRJ22562
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ सत्यप्रिय आर्य, "पाणिनीय व्याकरण की लोकरञ्जकता ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 6, pp.14-25, November-December.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ22562

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