काव्यशास्त्र का उद्भव तथा विकास: एक संक्षिप्त परिचय

Authors(1) :-डॉ. दिलीप कुमार

काव्यशास्त्र की विकासयात्रा का मूल्यांकन करने वाले सभी विद्वान् इस शास्त्र का मूल ‘ऋग्वेद’ को मानते हैं। काव्य के अनेक तत्त्वों में रस का महत्त्व अपरिहार्य है। रस ही काव्य की जीवन्तता है।

Authors and Affiliations

डॉ. दिलीप कुमार
पूर्व शोध छात्र, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत।

काव्यशास्त्र, उद्भव, विकास, काव्य, साहित्य, दर्शन, अलंकार, रस।

  1. डाॅ0 एस0के0दे0ः संस्कृत पोएटिक्स, भाग 5.1
  2. पं0 बलदेव उपाध्याय: भारतीय साहित्यशास्त्र, खण्ड 1-2
  3. संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास-बलदेव उपाध्याय, काव्यमीमांसा, कामसूत्र, ऋग्वेद, 7-29-3
  4. अष्टाध्यायी 2-1-55, 2-1-56, 2-3-62
  5. 5 .महाभाष्य 2-1-56
  6. उद्धृत-संस्कृत का समीक्षात्मक अर्वाचीन काव्यशास्त्र-डाॅ0 अभिराज राजेन्द्र मिश्र
  7. नाट्यशास्त्र 6-116
  8. नाट्यशास्त्र 6-18

Publication Details

Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023
Date of Publication : 2023-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 58-62
Manuscript Number : GISRRJ236113
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. दिलीप कुमार, "काव्यशास्त्र का उद्भव तथा विकास: एक संक्षिप्त परिचय ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 6, Issue 1, pp.58-62, January-February.2023
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ236113

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