स्ंात और सनातन धर्म

Authors(1) :-डाॅ0 योगेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी

संत समाज की प्रासंगिकता एवं उपयोगिता इस तथ्य से प्रमाणित होती है कि अधिकांश संत दान एवं भिक्षाटन कर अपने आश्रम, मठ का देखभाल करते हैं एवं हिन्दू समाज उन्हें दान देने में सदैव तत्पर रहता है। वहीं सनातन धर्म जो समाज में व्याप्त सभी प्रकार के भेदभावों एवं असमानताओं को जड़-मूल से नष्ट कर नागरिकों में परस्पर प्रेम एवं सौहार्द में वृद्धि तथा सभी वर्गों में एकता का संचार करती है। सनातन संस्कृति में जाति, वर्ण, समुदाय, कुल, वंश, रंग के आधार पर भेदभाव जैसा किसी व्यवस्था के प्रचलन का प्रमाण नहीं मिलता है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 योगेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी
आचार्य एवं अध्यक्ष समाजशास्त्र विभाग, का0सु0साकेत पी0जी0 कालेज, अयोध्या, उत्तर प्रदेश।

संत, सनातन, धर्म, समाज, आश्रम, इम, हिन्दू।

  1. श्रीरामचरितमानस, गीताप्रेस, गोरखपुर, बालकाण्ड पृ0सं 4
  2. श्रीरामचरितमानस, गीताप्रेस, गोरखपुर, बालकाण्ड पृ0सं 6
  3. श्रीरामचरितमानस, गीताप्रेस, गोरखपुर, बालकाण्ड पृ0सं 9
  4. देवीभागवत ७ स्कन्द
  5. श्रीमद्भागवत महापुराण-पेज 3 से 25 तथा 2.7.1 से 38, गीताप्रेस, गोरखपुर
  6. शिव पुराण-गीतापे्रस, गोरखपुर
  7. हितोपदेश संत-धर्म
  8. भारत की संत परम्परा, श्याम शंकर उपाध्याय, पूर्व विधिपरामर्शी मा0 राज्यपाल, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
  9. श्रीमद्भगवतगीता, (विशिष्ट संस्करण), गीताप्रेस, गोरखपुर, अध्याय-४ श्लोक-१३ पृ-१॰४
  10. https://hindi.webdunia.com/sanatan-dharma-article/what-is-sanatana-
  11. dharma- in-hindi-116080900025_1.html
  12. https://hi.wikipedia.org/wiki/ सम्प्रदाय
  13. https://hi.wikipedia.org/wiki/ सौरऋसम्प्रदाय
  14. https://hi.wikipedia.org/wiki/ गणपत्य

Publication Details

Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023
Date of Publication : 2023-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 74-79
Manuscript Number : GISRRJ236116
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 योगेन्द्र प्रसाद त्रिपाठी, "स्ंात और सनातन धर्म ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 6, Issue 1, pp.74-79, January-February.2023
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ236116

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