Manuscript Number : GISRRJ236120
भारत में नारीवादः इतिहास, विकास और चुनौतियाँ
Authors(1) :-नीरज कुमार द्विवेदी
भारत में नारीवाद एक महत्वपूर्ण सामाजिक और राजनीतिक आंदोलन है, जिसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों और समानता को बढ़ावा देना है। इसका इतिहास प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक फैला हुआ है। प्राचीन भारत में महिलाओं को एक सम्मानित स्थान प्राप्त था, लेकिन समय के साथ उनकी स्थिति में गिरावट आई। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महिलाओं ने सक्रिय भूमिका निभाई, जिसने नारीवाद के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। नारीवाद की तीन प्रमुख लहरें हैं। पहली लहर शिक्षा और मतदान के अधिकारों पर केंद्रित थी, दूसरी लहर घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न जैसे मुद्दों पर जोर देती थी, जबकि तीसरी लहर विविधता और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों को प्राथमिकता देती है। विभिन्न संगठनों और आंदोलनों ने महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष किया है, जैसे कि 'सर्विका' और अन्य नारीवादी समूह। हालांकि वर्तमान समय में महिलाओं की शिक्षा, रोजगार, और राजनीतिक भागीदारी में सुधार हुआ है, फिर भी सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक चुनौतियाँ बनी हुई हैं। पारंपरिक मान्यताएँ, आर्थिक असमानता, और दुरुपयोग के मामले महिलाओं की स्वतंत्रता को बाधित करते हैं। इस प्रकार, भारत में नारीवाद ने महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन इसे अभी भी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। समाज में जागरूकता और सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है, ताकि महिलाओं के अधिकारों को सशक्त बनाया जा सके और समाज में समानता स्थापित हो सके।
नीरज कुमार द्विवेदी
नारीवाद, महिलाओं के अधिकार, चुनौतियाँ, स्वतंत्रता संग्राम, सामाजिक आंदोलन शिक्षा (Education), रोजगार, राजनीतिक भागीदारी, घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, नारीवादी संगठन, सांस्कृतिक बाधाएँ। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023 Article Preview
असिस्टेंट प्रोफेसर, समाजशास्त्र विभाग, भारतीय महाविद्यालय फर्रुखाबाद, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2023-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 104-107
Manuscript Number : GISRRJ236120
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ236120