महान संत कवि कबीर के काव्य में परिलक्षित सामाजिक यथार्थ

Authors(1) :-राखी पचौरी

1398 ईसवी में काशी में जन्मे महान संत कबीर दास जी ऐसे कवि और समाज सुधारक थे कि उनके जैसा आज तक न कोई हुआ ना होगा। उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन मानव मूल्यों की रक्षा एवं मानव सेवा में व्यतीत किया। कबीर दास जी जिस दुरावस्था के काल में पैदा हुए वह समय घोर अंधकार और निराशा से भरा हुआ था। अनेक समस्याओं ने भारत देश में अपनी जड़े जमा ली थीं। समाजिक रूढ़ियाँ, छुआ-छूत, धार्मिक पाखंड, हिंसा, साम्प्रदायिकता, वर्ण भेद, बाहरी आडंबर, हिन्दू मुस्लिम झगड़ें आदि बुराईयों ने अपने पैर पसार लिए थे। जन्म स्थान काशी का धर्मांध वातावरण, पारिवारिक जीवन से असंतुष्टि, जाति विद्रोह, जुलाहा व्यवसाय, पर्यटनशीलता, अशिक्षा और गुरू रामानन्द से प्राप्त दीक्षा आदि से कबीर का व्यक्तित्व निर्मित हुआ। कबीर दास जी ने अपने विलक्षण, साहसी और निर्भयतापूर्ण दृष्टिकोंण द्वारा समाज के यथार्थ को उद्घाटित ही नहीं किया अपितु समाज सुधार की क्रांतिकारी भावना को भी जागृत किया।

Authors and Affiliations

राखी पचौरी
शोधार्थिनी- हिन्दी विभाग, आगरा कॉलेज, आगरा

क्रान्तिकारी, धर्मांध, दृष्टिकोंण, सत्कर्म, नरर्थक, समन्वय, दृष्टिगोचर, साम्प्रदायिकता, जर्जर आदि।

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Publication Details

Published in : Volume 6 | Issue 2 | March-April 2023
Date of Publication : 2023-04-05
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 85-88
Manuscript Number : GISRRJ236133
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

राखी पचौरी, "महान संत कवि कबीर के काव्य में परिलक्षित सामाजिक यथार्थ ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 6, Issue 2, pp.85-88, March-April.2023
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ236133

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