Manuscript Number : GISRRJ23616
मुंडाओं के देष में “गीत और संगीत“- वर्तमान परिदृष्य
Authors(1) :-सोमनाथ पुरती “चलना ही नृत्य है, बोलना ही गीत है“। यह प्रचलित कथन जनजातिय बहुल राज्य झारखण्ड के मुंडा जनजाति की पहचान है। वास्तव में यह मुंडारी भाशा के “सेन गे सुसुम, कजिगेदुरंग“ का हिन्दी रुपांतरण है। यह कहावत जनजाति अध्ययन के षोधार्थियों को अनायास ही आकर्शित करता है। मैं भी एक षोधार्थी हूँ और मुंडा जनजाति के सम्बन्ध रखने के कारण इसके अध्ययन हेतु मैं स्वप्रेरित हुआ। इस षोध-पत्र में इसी प्रचलित कथन का मुंडा जनजाति के सर्दभ में गहन छानबीन वर्Ÿामान परिदृष्य में किया गया है। मूलतः, यह अध्ययन खूंटी जिले के मुरहू प्रखंड में ऐतिहासिक, आनुभविक और अवलोकन विधि से किया गया है। अध्ययन के परिणाम बताते है कि मुख्यतः भौतिकवादी संस्कृति का नकारात्मक प्रभाव और नक्सलवाद मुण्डा जनजाति के गीत-संगीत को भयानक क्षति पहुँचा रहे है। इन दोनों कारकों पर नियंत्रण रखकर ही इस अमूल्य धरोहर को संरक्षित किया जा सकता है।
सोमनाथ पुरती मुंडा, देष, गीत, संगीत, जनजातिय, झारखण्ड, मुडारी, भाशा। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023 Article Preview
षोधार्थी, राजनीति विज्ञान विभाग, बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विष्वविद्यालय, धनबाद, भारत।
Date of Publication : 2023-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 22-24
Manuscript Number : GISRRJ23616
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ23616