Manuscript Number : GISRRJ23637
वेदार्थावबोध में स्वरों की उपादेयता
Authors(1) :-डाॅ. संजीवनी आर्या समस्त ज्ञानराशि का मूल वेद है। वेदों से ज्ञान प्राप्ति करने हेतु वेदार्थ की अत्यन्त आवश्यकता है। वेदों के अर्थ को सरलता से अवगमनार्थ छह वेदांगों की संरचना हुई। शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष। वेदों के अर्थ बोध हेतु शिक्षा रूपी वेदांग का महत्त्वपूर्ण योगदान है। वर्णों का ज्ञान, वर्णों का उच्चारण, वर्णों के प्रयत्न इत्यादि अनेक विषय शिक्षा वेदांग द्वारा अधिगम किए जाते हैं। शिक्षा वेदांग का मुख्य विषय है स्वर। यद्यपि स्वर शब्द के अनेक अर्थ हैं तथापि वेदार्थ के अवबोध में मुख्य रूप से स्वर शब्द से उदात्त, अनुदात्त, स्वरित रूपी अर्थों को ग्रहण किया जाता है। उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित स्वरों का वेदार्थावगमन में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण योगदान है। बिना स्वर ज्ञान के वेदार्थ अवबोध नहीं हो सकता है। उदात्त, अनुदात्त एवं स्वरित का ज्ञान वेदार्थ के अवबोध में किस प्रकार उपादेय है? उनका स्वरूप क्या है? उनके द्वारा अर्थ की स्पष्टता कैसे होती है? इत्यादि अनेक प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत आलेख में प्रतिपादित किया गया है।
डाॅ. संजीवनी आर्या स्वर, उदात्त, अनुदात्त, स्वरित, उपादेयता, वेदार्थावबोध । Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 3 | May-June 2023 Article Preview
असिस्टेन्ट प्रोफेसर, विद्या भवन महिला महाविद्यालय, सिवान (बिहार)
Date of Publication : 2023-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 42-48
Manuscript Number : GISRRJ23637
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ23637