Manuscript Number : GISRRJ23639
विद्यापतिक गीतमे रसक विविध रूपक परीक्षण
Authors(1) :-राजीव कुमार झा रस आ गुणकेँ काव्यक आत्मा मानल जाइत अछि। रसक महत्ता सर्वोपरि अछि। रसक अर्थ होइत अछि आनंद। एकर तात्पर्य ई अछि जे जाहि रचनाकेँ पढ़ि आनंदक प्राप्ति होअय, वैह काव्य थिक। नाट्यशास्त्रक प्रणेता आचार्य भरत मुनि अपन प्रसिद्ध ग्रंथमे लिखने छथि- “विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगद्रस-निस्पत्तिः“1
मोनक विचार भाव कहबैत अछि। हृदयमे वासना प्रेम, क्रोध आदिक रूपमे रहयबाला भाव स्थायीभाव कहबैत अछि। ई भाव सभ मोनमे सुतल रहैत अछि मुदा अनुकूल अवसर भेटतहिं, ओ अनायासे जागि जाइत अछि। जखन कोनो स्त्रीकेँ मनोनुकूल पुरुष वा कोनो पुरुषकेँ मनोनुकूल स्त्री भेटि जाइत छथि, तखन ओकरा प्रति आकर्षण भाव जागैत अछि। इयह आकर्षण प्रेम कहबैत अछि। एहिना ककरो मोनक प्रतिकूल आचरण करयबाला व्यक्ति प्रति ओकरा क्रोध उत्पन्न होइत अछि अर्थात जखन धरि मोनक अनुकूल वा प्रतिकूल व्यक्ति नहि भेटैत अछि, तखन धरि नहि तँ प्रेम उत्पन्न होइत अछि आ नहि क्रोध मुदा ई भाव मनुष्यक हृदयमे जन्मसँ ल’ क’ मृत्यु धरि वर्तमान रहैत अछि। तात्पर्य ई जे हृदयक प्रसुप्त भावकेँ जगयबाक लेल कोनो-ने-कोनो बाह्य वस्तुक आवश्यकता होइत अछि। मनुष्यक हृदयमे मुख्यतः दू प्रकारक भाव रहैत अछि-1. स्थायी आ 2. अस्थायी। जे भाव बेसी काल धरि मनुष्यक हृदयमे अवस्थित रहैत अछि, ओकरा ‘स्थायी भाव’ आ जे अल्प समय धरि टिकल रहैत अछि, ओकरा ‘अस्थायी भाव’ कहल जाइत अछि। “जे मनुष्यक स्थायी भावकेँ उद्दीप्त क’ दैत अछि, विभाव कहबैत अछि।
राजीव कुमार झा Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 3 | May-June 2023 Article Preview
शोधार्थी, पूणियाँ विश्वविद्यालय, पूर्णियाँ
Date of Publication : 2023-06-30
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Page(s) : 55-61
Manuscript Number : GISRRJ23639
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ23639