Manuscript Number : GISRRJ236622
महादेवी वर्मा का काव्य वितान: एक आलोचनात्मक अध्ययन
Authors(1) :-डॉ० माया गोला दुनिया का कोई भी सहित्य हो दरअसल वह अपने समय और समाज की उपज होता है। इसमें उस देश की सामाजिक, सांस्कृतिक रीति नीति के साथ-साथ उस समय और समाज की भिन्न-भिन्न परंपरा का विशेष योग होता है। किसी साहित्यकार की अपनी समकालीन भिन्न-भिन्न स्थितियां यथा-राजनीतक, सामाजिक, सांकृतिक, धार्मिक एवं आर्थिक आदि स्थितियां उसके साहित्य सृजन को प्रत्यक्ष परोक्ष रूप में प्रभावित करती रहती हैं। महादेवी वर्मा छायावाद के महत्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। उनके काव्य संग्रह-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा, दीपशिखा, सप्तपर्ण हैं। भिन्न-भिन्न आलोचकों ने उनके संपूर्ण काव्य पर लोकोŸार और रहस्यवादी होने का आरोप लगाया है। यह शोध आलेख उनके काव्य के इहलौकिक और अपने समय और समाज की चिंताओं से ओत प्रोत होने की एक संभव खोज भर है।
डॉ० माया गोला सहित्येितहास, श्रृंखला, लोकोŸार, रहस्यवाद, पलायनवाद, कपना, यथार्थवाद, प्रकृति, लाक्षणिकता, वक्रता, अभिव्यंजना, स्वाधीनता, आंदोलन, समीक्षा, शक्ति, प्रत्याख्यान, ऐतिहासिक, दृष्टि, व्यक्ति वैचित्र्य, समकालीनता, छायावाद, नवजागरण, अनुभूति व सहानुभूति, इहलौकिक व पारलौकिक, वेदना, कविता आदि। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023 Article Preview
असि0 प्रो0 सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय
Date of Publication : 2023-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 154-160
Manuscript Number : GISRRJ236622
Publisher : Technoscience Academy
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