मत्स्य पुराण में निहित शिव विषयक वर्णनों का विश्लेषण

Authors(2) :-डाॅ सिद्धार्थ सिंह, सन्तोष कुमार पाण्डेय

हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अन्तर्गत अष्टादष पुराणों में मत्स्य पुराण विविध दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह मुख्य रूप से वैष्णव पुराण है जो कि मत्स्य मनु के संवाद से प्रारम्भ होता है। यद्यपि इस पुराण में श्री हरि विष्णु से सम्बन्धित वर्णन ही सर्वाधिक रूप में मिलते हैं, फिर भी पद्म पुराण (उत्तरखण्ड 236/18) में इसे शैव पुराण बताया गया है। इस पुराण में भगवान षिव के सगुण तथा निर्गुण दोनों ही रूपों का वर्णन मिलता है। षिव को परमब्रह्म परमसत तथा परमतत्व बताया गया है। षिव की प्रसन्नता तथा अप्रसन्नता दोनों ही कल्याणकारी है। मनुष्यों की भाँति देवताओं तथा असुरों ने भी षिव को प्रसन्न करके मनवांछित फल प्राप्त किए हैं। षिव की उपासना मूर्ति तथा लिंग दोनो ही रूपों में की जा सकती है। लिंग रूप में षिव पूजा का विषेष महत्व है क्योंकि इसके माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु, महेष तीनों की पूजा एक साथ की जा सकती है। इस पुराण में षिवरात्रि व्रत तथा गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा नदी की महिमा बताई गई है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित अनेक छोटे-बड़े शैव तीर्थस्थल तथा गंगा नदी के तट पर स्थित काषी का विषेष महत्व है।

Authors and Affiliations

डाॅ सिद्धार्थ सिंह
असि0 प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर, उत्तर प्रदेश।
सन्तोष कुमार पाण्डेय
शोध छात्र, प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर, उत्तर प्रदेश।

जटाजूटधारी, सहस्त्रसिरधारी, पिनाकधारी, अनन्तस्वरूपा, सुरश्रेष्ठ, वृषवाहनधारी, भक्त वत्सल, अमरकण्टक

  1. मत्स्य पुराण 47/126-165
  2. विष्वात्मने विष्वसृजे विष्वमावृत्य तिष्ठते। भक्तानुकम्पिने नित्यं दिषते यन्मनोगतम्।। (मत्स्य पु0 132/28-29)
  3. मत्स्य पुराण 154/179-184
  4. मत्स्य पुराण, 154/345-351
  5. मत्स्य पुराण, 250/28-40
  6. भक्तानुकम्पी भावज्ञो भुवनादीष्वरो विभुः। यज्ञाग्रभुक् सर्वहविः सौम्यः सोमः स्मरान्तकृत्।।, (मत्स्य पुराण, 250/49)
  7. एवं मन्वादयो देव! वदन्ति परमर्षयः।, (म0 पु0 187/87)
  8. मत्स्य पुराण 183/44-48,57-59
  9. अविमुक्तं समासाद्य लिङ्गमर्चयते नरः। कल्पकोटिषतैष्चापि नास्ति तस्य पुनर्भवः।।, (म0पु0, 185/55)
  10. म0पु0 185/56-60
  11. रूद्ररूपाय शव्र्वाय नमः संहारकारिणे। नमः शूलयुधाधृष्य नमो दानवधातिने।। (म0पु0 249/39)
  12. मत्स्य पुराण 154/7
  13. मत्स्य पुराण 250/30
  14. मत्स्य पुराण 95/32-35
  15. विमुक्तं न मया यस्मान्मोक्ष्यते वा कदाचन। महत् क्षेत्रमिदं तस्मादविमुक्तमिदंस्मृतम्।।, (म0पु0 180/54)
  16. मत्स्य पुराण 181/19-21
  17. मत्स्य पुराण 182/6-7
  18. मत्स्य पुराण 183/102
  19. कामः क्रोधष्चलोभष्च दम्भस्तम्भोऽतिमत्सरः।। निद्रा तन्द्रातथाऽऽलस्यपैषून्यमितितेदष। अविमुक्तेस्थिताः विघ्नाः शक्रेणविहिताः स्वयम्।। , (म0पु0 184/29-30)
  20. मत्स्य पुराण 185/66-67
  21. मत्स्य पुराण 186/10-11

Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024
Date of Publication : 2024-01-15
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 10-16
Manuscript Number : GISRRJ24712
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ सिद्धार्थ सिंह, सन्तोष कुमार पाण्डेय, "मत्स्य पुराण में निहित शिव विषयक वर्णनों का विश्लेषण", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 7, Issue 1, pp.10-16, January-February.2024
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24712

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