Manuscript Number : GISRRJ24712
मत्स्य पुराण में निहित शिव विषयक वर्णनों का विश्लेषण
Authors(2) :-डाॅ सिद्धार्थ सिंह, सन्तोष कुमार पाण्डेय हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के अन्तर्गत अष्टादष पुराणों में मत्स्य पुराण विविध दृष्टि से महत्वपूर्ण ग्रन्थ है। यह मुख्य रूप से वैष्णव पुराण है जो कि मत्स्य मनु के संवाद से प्रारम्भ होता है। यद्यपि इस पुराण में श्री हरि विष्णु से सम्बन्धित वर्णन ही सर्वाधिक रूप में मिलते हैं, फिर भी पद्म पुराण (उत्तरखण्ड 236/18) में इसे शैव पुराण बताया गया है। इस पुराण में भगवान षिव के सगुण तथा निर्गुण दोनों ही रूपों का वर्णन मिलता है। षिव को परमब्रह्म परमसत तथा परमतत्व बताया गया है। षिव की प्रसन्नता तथा अप्रसन्नता दोनों ही कल्याणकारी है। मनुष्यों की भाँति देवताओं तथा असुरों ने भी षिव को प्रसन्न करके मनवांछित फल प्राप्त किए हैं। षिव की उपासना मूर्ति तथा लिंग दोनो ही रूपों में की जा सकती है। लिंग रूप में षिव पूजा का विषेष महत्व है क्योंकि इसके माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु, महेष तीनों की पूजा एक साथ की जा सकती है। इस पुराण में षिवरात्रि व्रत तथा गंगा, यमुना, सरस्वती एवं नर्मदा नदी की महिमा बताई गई है। नर्मदा नदी के तट पर स्थित अनेक छोटे-बड़े शैव तीर्थस्थल तथा गंगा नदी के तट पर स्थित काषी का विषेष महत्व है।
डाॅ सिद्धार्थ सिंह जटाजूटधारी, सहस्त्रसिरधारी, पिनाकधारी, अनन्तस्वरूपा, सुरश्रेष्ठ, वृषवाहनधारी, भक्त वत्सल, अमरकण्टक Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024 Article Preview
असि0 प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर, उत्तर प्रदेश।
सन्तोष कुमार पाण्डेय
शोध छात्र, प्राचीन इतिहास पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2024-01-15
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 10-16
Manuscript Number : GISRRJ24712
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24712