Manuscript Number : GISRRJ24732
मीरा की स्त्री चेतना
Authors(1) :-नागरमल मीरा भक्तिकाल की सशक्त साधिका, कवयित्री तथा भक्त रही हैं। मध्यकाल में स्त्रियो ं की स्थिति बहुत अच्छी नही ं थी। फिर मीरा तो राजकुल की वधू थी और उसपर भी विधवा। मीरा के लिए भक्ति में लीन होना र्कोइ आसान राह नहीं था। सभी प्रकार की बाधाओं को पार करते हुए मीरा एक महान भक्त की श्रेणी में पहुँच र्गइ । मीरा की कविता नारी अंतर्मन की उस धुटन और तड ़प का प्रतिनिधित्व करती है जो हमारी परंपरा और व ेद तथा धर्मशास्त्र-विहित हमारे विधि-विधानों के चलते, सदियों से नारी के अंतर्मन में उमड़ती-घुमड ़ती रही है और जिसे ढ ़ना मुश्किल नहीं है। बहरहाल, मीरा साहस करके सामने आईं, उन्होंने एक बार घर या महल की चारदीवारी जो लाँधी तो फिर दुबारा वहाँ वापस लौटकर नहीं गई - ‘स ंतन कहा सीकरी सो काम’ कुंभनदास की यह उक्ति मीरा के आचरण में भी चरितार्थ हुई।
नागरमल प्रतिनिधित्व, अनभिव्यक्त, स्वत्व, संप्रदाय, यातनाग्रस्त, शताब्दियाँ, आत्मनिव ेदन, जद्दोजहद, पितृसत्तात्मक, भूमण्डलीकरण, उत्पीड़न, विशेषाधिकार। Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 3 | May-June 2024 Article Preview
व्याख्याता हिंदी, श्री वीर तेजा उच्च माध्यमिक विद्यालय सुनारी नागौर ;राजस्थान
Date of Publication : 2024-05-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 13-17
Manuscript Number : GISRRJ24732
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24732