Rivers in Vedic Literature : Symbolism, Significance, and Cultural Impact

Authors(1) :-Dr. Anshul Dubey

महिला और पुरुष सृष्टि के निर्माता ईश्वर की दो अनोखी और विचित्र रचनाएं हैं। दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं। दोनों के सहयोग से ही सृष्टि का निर्माण होता है। समाज में महिलाओं की स्थिति कैसी है, यह समाज उन्हें पुरुषों के समान अधिकार प्रदान करता है या नहीं, प्राचीन समय के ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक भारत में स्त्रियों की स्थिति कैसी रही होगी आदि का उल्लेख करना और जानने का प्रयास करना अति आवश्यक है। ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल में स्त्रियों की स्थिति के संबंध में जब हम अध्ययन करते हैं तो पाते हैं कि दोनों ही कालों में स्त्रियों की स्थिति में बहुत बड़ा अंतर है। जहां ऋग्वैदिक काल में उन्हें समाज में सम्मानित स्थान प्राप्त होता था वही उत्तर वैदिक काल आते-आते उनकी स्थिति में बहुत ही अधिक गिरावट दर्ज होने लगी। ऋग्वैदिक काल का जीवन अपेक्षाकृत स्वतंत्र और स्वच्छंद होता था महिलाएं अपने जीवनसाथी का चुनाव कर सकती थी। सामाजिक गतिविधियों में उनके किसी भी सहभागिता पर प्रतिबंध नहीं होता था। वैदिक काल में स्त्री को जितनी स्वतंत्रता थी उतनी किसी भी युग में नहीं रही। उत्तर वैदिक काल की स्त्रियों की स्थिति में परिवर्तन आया और उनकी दशा में अवनति के तत्व दिखाई देने लगे। उनका सामाजिक स्तर गिरा और उन्हें समाज में अब वह सम्मान नहीं प्राप्त होता था जो ऋग्वैदिक काल में प्राप्त होता था। उनके सामाजिक और धार्मिक अधिकार तो इस युग में भी बन रहे लेकिन उनके व्यक्तिगत गुणों के प्रति संदेह व्यक्त किया जाने लगा। भारत पुरुष प्रधान देश है और इस पुरुष प्रधान समाज के कारण स्त्रियों की स्थिति बद से बदतर होती गई। प्रस्तुत शोध पत्र में शोधार्थी के द्वारा यह जानने व समझने का प्रयास रहेगा कि ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक महिलाओं की स्थिति में क्रमिक पतन के क्या कारण हो सकते है और उनके चरणों की जांच करते हुए दोनों की तुलनात्मक अध्ययन करना है।

Authors and Affiliations

Dr. Anshul Dubey
Assistant Professor, Department of Sanskrit, Tilak Mahavidyalaya, Auraiya, Uttar Pradesh, India

ऋग्वैदिक, उत्तरवैदिक कालीन, महिलाओं, तुलनात्मक अध्ययन आदि।

  1. सिंह, रहीस : प्राचीन भारत: प्रागैतिहासिक से सामंतवाद तक, नई दिल्ली: पेज 144,
  2. पाठक, डॉ. सुशील माधव : विश्व की प्राचीन सभ्यता का इतिहास, पेज 443
  3. श्रीनेत्र पाण्डेय: भारत का बृहत इतिहास, पेज 109,
  4. अथर्ववेद, राकेश रानी पण्डित, 2013,पेज 23
  5. सामवेद, पेज 164
  6. यजुर्वेद: राकेश रानी पण्डित, पेज 55,
  7. अलतेकर ए.एस.: प्राचीन भारतीय शिक्षा पध्दति, संशोधित संस्करण, पृष्ठ संख्या,196,
  8. शुक्ला, वी.डी.: पूर्व मध्यकालीन संस्कृति और जीवन, पृष्ठ संख्या 304,
  9. पांडेय, प्रमोदिनी : वेद कालिन नारी शिक्षा, ओरिएंटल बुक सेन्टर, नई दिल्ली,
  10. नागोरी, डॉ. एस.एल : प्राचीन भारतीय चिंतन का इतिहास, जयपुर नेशनल पब्लिशिंग हाउस ,
  11. सिंह,बी.एन. और जन्मेजय सिंह : नारीवाद, जयपुर रावत पब्लिकेशन,
  12. सहाय, डॉ. शिव स्वरूप: प्राचीन भारत का सामाजिक व आर्थिक इतिहास, जयपुर, नेशनल पब्लिक सिंग हाउस,
  13. हबीब, इरफान और विजय कुमार ठाकुर: वैदिक काल, नई दिल्ली, डायमंड प्रकाशन,
  14. पाण्डेय, राजबली : अथर्ववेद, दिल्ली डायमंड पब्लिकेशंस
  15. प्रसाद, ओमप्रकाश और प्रशांत गौरव : नारीवाद, जयपुर, रावत प्रकाशन

Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 4 | July-August 2024
Date of Publication : 2024-08-20
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 33-38
Manuscript Number : GISRRJ24745
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

Dr. Anshul Dubey, "Rivers in Vedic Literature : Symbolism, Significance, and Cultural Impact ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 7, Issue 4, pp.33-38, July-August.2024
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24745

Article Preview