द्वितीय नगरीकरण के उत्कर्ष में लोहे की भूमिका

Authors(2) :-जय प्रकाश यादव, डॉ. दिनेश मांडोत

लोहे का आविष्कार मानव के प्रगति के विकास के इतिहास में उसकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है । विश्व के औद्योगिक विकास का मूलाधार लोहा ही है। उत्खनन में अनेक धातुओं की तरह भारत से लोहे की सामग्रियां भी प्राप्त हुई है। लोहा एक कठोर धातु है, जिससे मनुष्य अपने लिये कठोर भूमि, वन, आक्रामक पशुओं और मनुष्यों से उत्पन्न संकट को टाल सकता था। कठोर भूमि को फाल या टुकडों की सहायता से तोड़ कर वह कृषि कार्य करने तथा इससे बनी सामाग्रियां और उपकरणों द्वारा उत्पादन को विकसित करने में सहायता किया होगा। इस प्रकार सभ्यता का विकास जो प्रथम नगरीकरण के बाद थोडा रूका था वह लोहे के प्रयोग द्वारा अब नवीन गति से विकसित हुआ । सिन्धु घाटी की सभ्यता कास्यं कालीन है, और उसके बाद भारत में लौह युग का प्रारम्भ होता है । लौह तत्व से मनुष्य लौह युग के बहुत पहले से परिचित था । हेमेटाइट जिसमें लौह तत्व की प्रधानता है, रंग के लिये पाषाण काल से ही प्रयुक्त होता रहा है। उपलब्ध साक्ष्यों के अनुसार लोहे का ज्ञान किसी न किसी रूप में मेसोपोटामिया' में 3000 ईसा पूर्व के लगभग था, सम्भवतः उसे गलाने की तकनीक का ज्ञान भी उन्हें 2800 ई० पूर्व तक हो गया था । प्रश्न यह उठता है कि, द्वितीय नगरीकरण के उत्कर्ष में लोहे की क्या भूमिका रही होगी ?

Authors and Affiliations

जय प्रकाश यादव
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, इतिहास, शोध- छात्र, भगवन्त विश्वविद्यालय, अजमेर (राजस्थान)
डॉ. दिनेश मांडोत
इतिहास विभाग, भगवन्त विश्वविद्यालय, अजमेर (राजस्थान)

द्वितीय नगरीकरण, लोहा, भूमिका।

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Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 5 | September-October 2024
Date of Publication : 2024-10-05
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-07
Manuscript Number : GISRRJ24751
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

जय प्रकाश यादव, डॉ. दिनेश मांडोत , "द्वितीय नगरीकरण के उत्कर्ष में लोहे की भूमिका", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 7, Issue 5, pp.01-07, September-October.2024
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