जगतप्रकाश चतुर्वेदी के काव्य में संवेदना और शिल्प

Authors(1) :-डॉ. केशव कुमार शर्मा

जगत प्रकाश चतुर्वेदी के सम्पूर्ण काव्य का अध्ययन एवं विश्लेषण करने पर हमें ज्ञात होता है कि आपका काव्य विविधतायुक्त है। जहाँ आपने अच्छे गीत एवं नवगीतों की रचना की है। वहीं आपने दोहे लिखकर भी अपनी अद्भुत सृजन क्षमता का परिचय दिया है। आपको रचनाएं संवेदना एवं शिल्प दोनों स्तरों पर पूर्णतः खरा उतरती है। आपने दोनों शैलियों में गीत लिखे--परम्परागत तथा आधुनिक परम्परा में 'नवगीत'। परम्परागत गीतों में जहाँ आपने प्रेम, सौन्दर्य, प्रकृति, मानवीय संवेदना को अपनी लेखनी का आधार बनाया है, वहीं नवगीतों में आपने गीत के नवीन शिल्प का निर्वाह करते हुए नए प्रतीक, बिम्ब, उपमान आदि का सटीक एवं सार्थक प्रयोग किया है। शिल्पगत नए प्रयोगों से कवि की भाषा में अभिव्यक्ति की प्रखरता एवं पैनापन देखते ही बनता है।

Authors and Affiliations

डॉ. केशव कुमार शर्मा
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग क0मुं0 हिन्दी तथा भाषाविज्ञान विद्यापीठ, भीमराव अम्बेदकर विश्वविद्यालय, आगरा।

नवगीत, दोहा, गीत, संवेदना।

  1. जगत प्रकाश चतुर्वेदी, 'बदली भी धूप भी' के परिशिष्ट से उद्‌धृत।
  2. परिशिष्ट से उद्धृत।
  3. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'सप्तपदी-IV', पृ0 वक्तव्य से उद्धृत।
  4. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'भदली भी, धूप भी', 'आपादस्य प्रथम दिवसे, पृ0 1
  5. वहीं, 'बदली भी, धूप भी', 'दिन की रात हुई, पृ0 15
  6. वही, 'बदली भी, धूप भी', 'किसी की आंख डबडबाई है', पृ॰ 12
  7. वही, 'बदली भी, धूप भी', 'टूटे तटबन्ध', 0 33
  8. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'बदली भी चूप भी", पृ0३0
  9. बाबू गुलाबराय, 'बदली भी धूप भी', १0
  10. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'गाओ बन पाखी', 'पर मेरे आराध्य न आये', पृ08
  11. जगत प्रकाश चतुर्वेदी, गाओ वनपारखी, 'बह गीत में गा माता हूँ', पृ0 20
  12. जगतप्रकाश, ‘सप्तपदी-IV, पृ.20
  13. वही, 21
  14. वही, 22
  15. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'छाये पावस के मेघ, पृ0 14
  16. वही, 'ये विर-घिर आए मेघ', पृ0 16
  17. वही, 'बरसे अंगारे, पृ0 31
  18. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'लौट चली बारात, पृ0 44
  19. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'सप्तपदी-IV', पृ0 24
  20. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'सप्तपदी-IV', १0 25
  21. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'चीनी आक्रमण पर', पृ0 35
  22. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'गोवा संघर्ष के प्रथम दिन',पृ0 37
  23. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'धरती तुम्हे पुकारती', पृ0 38
  24. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'सप्तपदी-IV', पृ0 2
  25. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'सप्तपदी-IV', ५0 27
  26. जगतप्रकाश चतुर्वेदी, 'सप्तपदी-IV', पृ0 26
  27. जयप्रकाश चतुर्वेदी, बदली भी, धूप भी, री बोले पपीता, पृ.20
  28. प्रकाश चतुर्वेदी, बदली भी, धूप भी, के फ्लैट से उद्धृत।

Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 6 | November-December 2024
Date of Publication : 2024-12-20
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 94-100
Manuscript Number : GISRRJ247614
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. केशव कुमार शर्मा , "जगतप्रकाश चतुर्वेदी के काव्य में संवेदना और शिल्प", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 7, Issue 6, pp.94-100, November-December.2024
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ247614

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