Manuscript Number : GISRRJ258342
बौद्ध धर्म में 'भैषज्य गुरु' की चिकित्सा पद्धति
Authors(1) :-चन्द्र कला राय छठी शताब्दी ई०पू0 में अहिंसा के महागुरू के तौर पर लोग बुद्ध को जानते है। महात्मा बुद्ध ने जो दार्शनिक बाते कहीं, वह कुछ नया नहीं था, अपितु वैदिक धर्म में उत्पन्न विसंगतियों के कारण इसका प्रादुर्भाव हुआ जनमानस ब्राह्मणों के बनायें नियमों-कर्मकाण्डों के आडम्बर से तंग आ चुका था। तथागत ने एक ऐसा मार्ग बताया जिसके पथ पर चलकर मानव जन्म-मरण से मुक्ति पा सकता था, तथागत एक समाज-सुधारक थे उन्होंने अपने धम्म में, अहिंसा, करूणा, नैतिकता पर विशेष बल दिया बुद्ध का ध्येय सबका हित, सबका सुख था। इसके साथ ही बुद्ध ने प्राकृतिक चिकित्सा पर बल दिया। यह काल चिकित्सा पद्धति का समृद्ध काल था। शंकराचार्य ने तो उन्हें ‘योगिनां चक्रवर्ती‘ कहा है।1 यह उस दर्शन के प्रवर्तक थे, जो संसार का सबसे बड़ा दर्शन है।
चन्द्र कला राय महावैद्य, निग्रोधमृग-जातक, जेतवन, अशोक, कृतिम अंगों, कषाय। Publication Details Published in : Volume 8 | Issue 4 | July-August 2025 Article Preview
शोध छात्रा, प्राचीन इतिहास विभाग,
इ० सि० स्व0 सं० राजकीय महाविद्यालय पचबस,बस्ती।
Date of Publication : 2025-07-10
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Page(s) : 04-08
Manuscript Number : GISRRJ258342
Publisher : Technoscience Academy
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