Manuscript Number : GISRRJ120345
गिरमिट प्रथा : एक अमानवीय व्यवस्था के चंगुल में फंसे भारतीय प्रवासी मजदूरों की दास्ता
Authors(1) :-गौरव गिरमिट प्रथा, औपनिवेशिक लालच से उपजे, गरीब भारतीयों के अमानवीय शोषण का प्रतीक थी। इस प्रथा(व्यवस्था) से बंधकर गरीब भारतीय मजदूर अपने भविष्य की उज्ज्वल कामना लिए जहाजों पर चढ़ अनजाने समुद्री द्वीपों को निकल दिए। परन्तु, उन्हें वहाँ भविष्य उज्ज्वल नहीं, अंधकार से भरा मिला। दास प्रथा के 1833 ई. में ब्रिटिश साम्राज्य से समाप्त होने के साथ ही 1834ई. में उसका स्थान लेने के लिए गिरमिट प्रथा प्रारम्भ कर दी गयी। गिरमिट (एग्रीमेंट) की व्यवस्था के माध्यम से गुलामी की स्थिति को वैधानिकता का मुखौटा पहनाया गया। विभिन्न द्वीपीय उपनिवेशों के बागान मालिक गन्ने की खेती हेतु भर्ती एजेंसियों के माध्यम से अनुबंध-आधारित मजदूर भारत से आयात करने लगे। अनुबन्ध की शर्तें अनपढ़-गरीब किसान-मजदूरों के समझ के बाहर थीं। वे तो भर्ती करने वाले अरकाटियों के बहकावे में अपनी दरिद्रावस्था से छुटकारे की आस लिए अनुबन्ध-पत्र पर अंगूठा लगा, अपना वतन छोड़ समुद्र पार चले गए। "1834 से 1917 के मध्य 13 लाख से भी ज्यादा भारतीय मॉरीशस, त्रिनिदाद, गयाना, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, व फीजी आदि द्वीपों में गिरमिटिया के रूप में गए।" जो अपने वतन फिर कभी लौट न सके। गांधी सहित प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओं ने भारतीयों के शोषण आधारित इस व्यवस्था को समाप्त करने हेतु लम्बा और राष्ट्रव्यापी आंदोलन किया। भारतीयों के तीव्र विरोध को देखते हुए भारत सरकार ने 1917 में देश से गिरमिटिया मजदूरों की भर्ती को समाप्त कर दिया।
गौरव गिरमिट प्रथा‚ अमानवीय‚ व्यवस्था‚ चंगुल‚भारतीय‚ प्रवासी‚ मजदूर‚दास्ता। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021 Article Preview
शोध छात्र, मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग,
इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2021-02-28
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Page(s) : 106-116
Manuscript Number : GISRRJ120345
Publisher : Technoscience Academy
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