क्षणिकवाद एवं खेमाथेरी-मार संवाद

Authors(1) :-इन्दु डिमोलिया

थेरीगाथा की थेरियों की गाथाओं में बौद्ध दार्शनिक तत्त्व दिखाई देते हैं। थेरीगाथा की थेरियाँ किसी अन्य से न लड़कर, स्वयं के मनोविकारों से ही लड़ती हैं। आज के समय में इस बात का बहुत बड़ा महत्व है, वर्तमान समाज में जहाँ एक-दूसरे पर दोषारोपण कर स्वयं को सही ठहराने की होड़ मची हुई है, वही थेरीगाथा की थेरियाँ स्वयं के मनोविकारों से लड़ने के लिए कहती हैं।

Authors and Affiliations

इन्दु डिमोलिया
शोधच्छात्रा, संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन संस्थान, जे.एन.यू, दिल्ली, भारत।

क्षणिकवाद, खेमाथेरी-मार, संवाद, बौद्ध, दार्शनिक, संस्कृत साहित्य।

  1. थेरीगाथा, डॉ. भरत सिंह उपाध्याय, गौतम बुक सेन्टर, दिल्ली, प्रथम संस्करण, 2010
  2. थेरीगाथा, डॉ. विमलकीर्ति, सम्यक् प्रकाशन, नई दिल्ली, तृतीय संस्करण, 2008
  3. बौद्ध-दर्शन-मीमांसा, आचार्य बलदेव उपाध्याय, चौखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, पुनर्मुद्रित संस्करण, 2014

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | November-December 2018
Date of Publication : 2018-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 113-118
Manuscript Number : GISRRJ181123
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

इन्दु डिमोलिया, "क्षणिकवाद एवं खेमाथेरी-मार संवाद ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 1, Issue 1, pp.113-118, November-December.2018
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ181123

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