Manuscript Number : GISRRJ192113
कालिदास के काव्यों में मदिरा के प्रसङ्ग
Authors(1) :-डॉ॰ मृत्युजंय कुमार महाकवि कालिदास ने तत्कालीन युग की समाजिक स्थितियों का सजीव चित्रण किया है। उनके काव्यों में आसव, अरिष्ट, सुरा, मद्य आदि की चर्चा अनेकत्र प्राप्त होती है। वस्तुत: वैदिक वाङ्मय में सोमरस के रहस्य को लोगों ने ठीक से नहीं समझा। उसी प्रकार कालिदास के द्वारा प्रयुक्त तथ्यों को न समझ पाने के कारण लोगों ने इसे मद्यपान का पर्याय मान लिया। यद्यपि तत्कालीन युग में मदिरापान माना जा सकता है किन्तु इसका बहुतायत से प्रयोग होता था अथवा इसे सामाजिक स्वीकृति मिली हुई थी; ऐसा कहना उचित नहीं है। आसव आदि वस्तुत: अनेक प्रकार से बनाए जाते हैं; जिसका प्रकार, निर्माण-विधि, गुण-दोषों की चर्चा आयुर्वेद के ग्रन्थों में किया गया है। कालिदास ने पुष्टिवर्धक पेय के रूप में आसव, अरिष्ट आदि की चर्चा अपने काव्यों में की है।
डॉ॰ मृत्युजंय कुमार आसव, अरिष्ट, सुरा, मद्य, मदिरा, पुष्प, मधु, पौष्टिक, कालिदास, वर्णव्यवस्था। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, हिसुआ, नवादा, बिहार (भारत)
Date of Publication : 2019-03-25
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Page(s) : 74-77
Manuscript Number : GISRRJ192113
Publisher : Technoscience Academy
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