कालिदास के काव्यों में मदिरा के प्रसङ्ग

Authors(1) :-डॉ॰ मृत्युजंय कुमार

महाकवि कालिदास ने तत्कालीन युग की समाजिक स्थितियों का सजीव चित्रण किया है। उनके काव्यों में आसव, अरिष्ट, सुरा, मद्य आदि की चर्चा अनेकत्र प्राप्त होती है। वस्तुत: वैदिक वाङ्‌मय में सोमरस के रहस्य को लोगों ने ठीक से नहीं समझा। उसी प्रकार कालिदास के द्वारा प्रयुक्त तथ्यों को न समझ पाने के कारण लोगों ने इसे मद्यपान का पर्याय मान लिया। यद्यपि तत्कालीन युग में मदिरापान माना जा सकता है किन्तु इसका बहुतायत से प्रयोग होता था अथवा इसे सामाजिक स्वीकृति मिली हुई थी; ऐसा कहना उचित नहीं है। आसव आदि वस्तुत: अनेक प्रकार से बनाए जाते हैं; जिसका प्रकार, निर्माण-विधि, गुण-दोषों की चर्चा आयुर्वेद के ग्रन्थों में किया गया है। कालिदास ने पुष्टिवर्धक पेय के रूप में आसव, अरिष्ट आदि की चर्चा अपने काव्यों में की है।

Authors and Affiliations

डॉ॰ मृत्युजंय कुमार
प्रखण्ड विकास पदाधिकारी, हिसुआ, नवादा, बिहार (भारत)

आसव, अरिष्ट, सुरा, मद्य, मदिरा, पुष्प, मधु, पौष्टिक, कालिदास, वर्णव्यवस्था।

  1. कालिदास का भारत। भाग 2 पृ0 59-60 भगवत शरण उपाध्याय। सन्दर्भ हेतु द्रष्टव्य संस्कृत कवियों के व्यक्तित्व का विकास पृ0 60-61 डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी।
  2. सुभाषितरत्नभाण्डागारम् पृ0 100।
  3. महाभारत 1.76.61
  4. मनुस्मृति 11.98
  5. श्रीमद्भगवद्गीता 9.20
  6. कालिकापुराण - 66
  7. कालिदास की माधुर्य दृष्टि- पृ॰ 18 कालिदास II, 1986 उज्जैन।
  8. कालिदास की तिथि संशुद्धि - पृ॰ 304, ईस्टर्न बुक लिंकर्स, दिल्ली 89।
  9. कुमारसम्भवम् - 7.62 तथा रघुवंशम् 7.11
  10. शब्दकल्पद्रुम - पृ॰ 592
  11. ऋतुसंहारम् - 1.3; 2.18; 4.11; 5.5,10। 6.10
  12. मालविकाग्निमित्रम् - 3.5.4
  13. मालविकाग्निमित्रम् - 3.5.4.6
  14. अभिज्ञानशाकुन्तलम् - 4.1
  15. अभिज्ञानशाकुन्तलम् - 6.12.7-8

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-03-25
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 74-77
Manuscript Number : GISRRJ192113
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ॰ मृत्युजंय कुमार, "कालिदास के काव्यों में मदिरा के प्रसङ्ग", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 1, pp.74-77, January-February.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192113

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