Manuscript Number : GISRRJ192119
स्त्री अस्मिता के प्रश्न और आदिवासी कविताएं
Authors(1) :-डॉ. अनीता मिंज आदिवासी समाज में स्त्रियों की प्रारंभिक दशा काफी हद तक ठीक थी। कुछ सामाजिक अंधविश्वासों, बुरी आदतों आदि के कारण कभी-कभी स्त्रियों को सामाजिक एवं मानसिक यातनाएं झेलनी पड़ती थी। इसके बावजूद समाज में लैंगिक भेद नहीं था। किंतु कुछ दशकों से आदिवासी क्षेत्रों में बाहरी घुसपैठियों, आर्थिक उदारीकरण आदि के कारण स्त्रियों के प्रति लैंगिक अपराधों में बढ़ोतरी हुई है। जिससे आदिवासी स्त्रियां अपनी अस्मिता की प्रति सचेत होने लगी हैं। आदिवासी स्त्रियों का आत्मबल पुरुषवादी वर्चस्व को तोड़ने की पहल करता है। वे पुरुष से 'स्त्री-मन' को 'स्त्री-दृष्टि' से देखने की बात करती हैं। प्रकृति की तरह स्त्री की 'सृजन-शक्ति' पुरुषत्व दंभ को ललकारती दिखलाई देती है। स्त्री-अस्मिता के ये सार्थक प्रश्न आदिवासी स्त्रियों की नारी चेतना को एक नई दृष्टि प्रदान करते हैं।
डॉ. अनीता मिंज आदिवासी कविता, स्त्री अस्मिता, बाहरी हस्तक्षेप, सामंतवाद, प्रतिरोधी चेतना, मुक्ति की आकांक्षा । Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
असिस्टेंट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, दौलत राम महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, नई दिल्ली, भारत।
Date of Publication : 2019-03-25
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 109-115
Manuscript Number : GISRRJ192119
Publisher : Technoscience Academy
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