Manuscript Number : GISRRJ192414
भारतीय संस्कृति में मानवीय मूल्यपरक शिक्षा की उपयोगिता
Authors(1) :-डॉ. अश्विनी कुमार संस्कृत वाङ्मय तो मानव मूल्यों की अक्षय निधि बतलायी गयी है और उसमें भी ‘वेद’ मानवीय मूल्यों की उद्गमस्थली पहले से ही रही है । विश्व वाङ्मय साहित्य का कोई ऐसा साहित्य नहीं, जो मानवीय-मूल्यों का संधारक न हो । विभिन्न भाषाओं का बाह्य कलेवर मानवीय मूल्यों के शाश्वत व चिरंतन सिद्धान्तों का ही चित्रांकन करता है तथा विश्वग्राम के जयघोष से मानवजाति को एक सूत्र में सूत्रित होकर “उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्” भावना को चरितार्थ करता है । जो शिक्षा मानव जाति को मात्र सुविधा व भोग-उपभोग के संसाधन को उपलब्धता कराती हो, वह शिक्षा मूल्यपरक नहीं मानी जा सकती । समस्त शिक्षा का मुख्य प्रयोजन तो मानवीय मूल्यों का समुचित रूप से विकास करना व कराना है ।
डॉ. अश्विनी कुमार देववाणी, मानवीय मूल्य, विश्व-बन्धुत्व, पुरुषार्थ, त्रिवर्ग, निष्काम कर्म, सर्वांगीण विकास, राष्ट्रीय प्रगति, सभ्यता तथा संस्कृति इत्यादि । Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
भूतपूर्व शोधच्छात्र, संस्कृतविभाग, कलासंकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी‚ उत्तर प्रदेश‚ भारत।
Date of Publication : 2019-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 50-56
Manuscript Number : GISRRJ192414
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192414