भारतीय संस्कृति में मानवीय मूल्यपरक शिक्षा की उपयोगिता

Authors(1) :-डॉ. अश्विनी कुमार

संस्कृत वाङ्मय तो मानव मूल्यों की अक्षय निधि बतलायी गयी है और उसमें भी ‘वेद’ मानवीय मूल्यों की उद्गमस्थली पहले से ही रही है । विश्व वाङ्मय साहित्य का कोई ऐसा साहित्य नहीं, जो मानवीय-मूल्यों का संधारक न हो । विभिन्न भाषाओं का बाह्य कलेवर मानवीय मूल्यों के शाश्वत व चिरंतन सिद्धान्तों का ही चित्रांकन करता है तथा विश्वग्राम के जयघोष से मानवजाति को एक सूत्र में सूत्रित होकर “उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्” भावना को चरितार्थ करता है । जो शिक्षा मानव जाति को मात्र सुविधा व भोग-उपभोग के संसाधन को उपलब्धता कराती हो, वह शिक्षा मूल्यपरक नहीं मानी जा सकती । समस्त शिक्षा का मुख्य प्रयोजन तो मानवीय मूल्यों का समुचित रूप से विकास करना व कराना है ।

Authors and Affiliations

डॉ. अश्विनी कुमार
भूतपूर्व शोधच्छात्र, संस्कृतविभाग, कलासंकाय, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी‚ उत्तर प्रदेश‚ भारत।

देववाणी, मानवीय मूल्य, विश्व-बन्धुत्व, पुरुषार्थ, त्रिवर्ग, निष्काम कर्म, सर्वांगीण विकास, राष्ट्रीय प्रगति, सभ्यता तथा संस्कृति इत्यादि ।

  1. महाभारत, स्वर्गारोहण पर्व 5/50
  2. त्रिवर्गो यं धर्ममूलोनरेन्द्र राज्यं चेदं धर्ममूलं वदन्ति ॥ महाभारत, वनपर्व 4/4
  3. नीतिशतक, भर्तृहरि, (श्लोक 20), व्याख्याकार- श्रीकृष्णमणि त्रिपाठी, पृष्ठ संख्या 19
  4. डॉ.ए.एस. अल्तेकर, एजुकेशन इन एनसियेन्ट इण्डिया: पी.डी. पाठक, भारतीय शिक्षा और उसकी समस्याएँ, पृष्ठ संख्या- 6

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 50-56
Manuscript Number : GISRRJ192414
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. अश्विनी कुमार, "भारतीय संस्कृति में मानवीय मूल्यपरक शिक्षा की उपयोगिता ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 2, pp.50-56, March-April.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192414

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