Manuscript Number : GISRRJ192420
सल्तनतकालीन भारतीय हिन्दू स्त्रियों की स्थिति
Authors(1) :-सन्नी देवल दास सल्तनत काल में स्त्रियों के कार्य और उनकी स्थिति विशेष रूप से अधीनस्थ रही है और कालान्तर में पुरुष की सेवा और जीवन के प्रत्येक चरण में उसपर निर्भर रहना ही क्रमशः उसके कार्य और स्थिति माने जाने लगे। वह पुत्री के रूप में अपने पिता के संरक्षण में, पत्नी के रूप में अपने पति के संरक्षण में और विधवा के रूप में ( उस स्थिति में जबकि उसे अपने पति की मृत्यु के पश्चात् जीवित रहने दिया जाता ) अपने ज्येष्ठ पुत्र की देखरेख में रहती थी।1 संक्षेप में उसका जीवन निरन्तर संरक्षण का जीवन था और सामाजिक विधान एवं परम्पराओं में उसे एक प्रकार से मानसिक रूप से अविकसित ठहराया गया है। पैदा होने पर लड़की को अनचाहा मेहमान समझा जाता, क्योंकि हिन्दुओं के धार्मिक दृष्टिकोण के अनुसार हतभागी पुत्री भूली विसरी घड़ी में किये गए अपने पिता के पास-कुंज का शोधन नहीं कर सकती।2 अतः उसे कुछ कबीलों में तो शिशुकाल में ही मार डाला जाता था। यदि उसे जीवित रहने दिया जाता तो उसे पति के साथ अटूट बंधन में बांध दिया जाता। यदि गर्भावस्था में उसकी मृत्यु हो जाती तो वह कभी-कभी ‘चुड़ैल’ नामक भयानक प्रेतात्मा का रूप धारण करके पड़ोस में अड्डा जमा लेती। मृत्यु या आत्म-बलिदान ही उसे मुक्ति प्रदान करते थे। इस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक स्त्री की दशा अत्यन्त दुखद रहती थी। उसका धर्म और अन्य सुधारवादी आध्यात्मिक आंदोलन भाग्य पर संतोष करने की बात कहकर उसे सांत्वना प्रदान करते किन्तु उन्होंने भी सावधानी से उसे किसी अधिकारिक स्थिति से और उसे अपनी आंतरिक धर्मसत्ता से भी परे रखा।
सन्नी देवल दास Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019 Article Preview
शोधार्थी, विश्वविद्यालय इतिहास विभाग, तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, भारत।
Date of Publication : 2019-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 69-75
Manuscript Number : GISRRJ192420
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192420