सल्तनतकालीन भारतीय हिन्दू स्त्रियों की स्थिति

Authors(1) :-सन्नी देवल दास

सल्तनत काल में स्त्रियों के कार्य और उनकी स्थिति विशेष रूप से अधीनस्थ रही है और कालान्तर में पुरुष की सेवा और जीवन के प्रत्येक चरण में उसपर निर्भर रहना ही क्रमशः उसके कार्य और स्थिति माने जाने लगे। वह पुत्री के रूप में अपने पिता के संरक्षण में, पत्नी के रूप में अपने पति के संरक्षण में और विधवा के रूप में ( उस स्थिति में जबकि उसे अपने पति की मृत्यु के पश्चात् जीवित रहने दिया जाता ) अपने ज्येष्ठ पुत्र की देखरेख में रहती थी।1 संक्षेप में उसका जीवन निरन्तर संरक्षण का जीवन था और सामाजिक विधान एवं परम्पराओं में उसे एक प्रकार से मानसिक रूप से अविकसित ठहराया गया है। पैदा होने पर लड़की को अनचाहा मेहमान समझा जाता, क्योंकि हिन्दुओं के धार्मिक दृष्टिकोण के अनुसार हतभागी पुत्री भूली विसरी घड़ी में किये गए अपने पिता के पास-कुंज का शोधन नहीं कर सकती।2 अतः उसे कुछ कबीलों में तो शिशुकाल में ही मार डाला जाता था। यदि उसे जीवित रहने दिया जाता तो उसे पति के साथ अटूट बंधन में बांध दिया जाता। यदि गर्भावस्था में उसकी मृत्यु हो जाती तो वह कभी-कभी ‘चुड़ैल’ नामक भयानक प्रेतात्मा का रूप धारण करके पड़ोस में अड्डा जमा लेती। मृत्यु या आत्म-बलिदान ही उसे मुक्ति प्रदान करते थे। इस प्रकार जन्म से लेकर मृत्यु तक स्त्री की दशा अत्यन्त दुखद रहती थी। उसका धर्म और अन्य सुधारवादी आध्यात्मिक आंदोलन भाग्य पर संतोष करने की बात कहकर उसे सांत्वना प्रदान करते किन्तु उन्होंने भी सावधानी से उसे किसी अधिकारिक स्थिति से और उसे अपनी आंतरिक धर्मसत्ता से भी परे रखा।

Authors and Affiliations

सन्नी देवल दास
शोधार्थी, विश्वविद्यालय इतिहास विभाग, तिलकामाँझी भागलपुर विश्वविद्यालय, भागलपुर, भारत।

  1. हिन्दू विवाह पद्धति में पत्नी के स्थान के लिए, मुल्ला, ‘हिन्दू ला’, 371, सामान्य हिन्दू विधान में तलाहक को स्थान नहीं है, क्योंकि हिन्दू विवाह पति और पत्नी के मध्य न टूटने वाला बन्धन है।
  2. राजपूतों में बालिकाओं की हत्या के लिये देखिए, जर्नल जेम्स टॉड द्वितीय, 739-40
  3. मीरा बाई की रोचक कथा देखिए, जिसे वृंदावन के गोसाई ने अपने सम्मुख उपस्थित होने की अनुमति नहीं दी। मेकालिफ, चतुर्थ, 353 के अनुसार।
  4. सन्तानोत्पत्ति के स्त्री के कार्य और उसे दिये जाने वाले सम्मान के लिये है म.अ., 192, 117
  5. विभिन्न वर्णन तुलनीय। कु. खु. 657-658, तबकात-ए-नासिरी (पाण्डुलिपि), 196.
  6. आधुनिक रिवाजों के लिए रास, फीस्ट्स, 98.
  7. आइने अकबरी, द्वितीय 188, अबुल फजल के पौत्र के लिए, जिसका नामकरण अकबर द्वारा किया गया था, वहीं, 282.
  8. प. (हि.), 124-6 जायसी का वर्णन, आधुनिक सादृश्य के लिए शाह, 120 और ग्रियर्सन, प्रादेशिक विचित्रताओं के लिए तुलनीय बरबोसा, प्रथम 116-17.
  9. इब्नबतूता, द्वितीय 47-9, उपहार में स्त्रियां दिये जाने के लिए कु. खु., 370, राजस्थान में दहेज में श्देवधारीश् नामक दासियों के दिये जाने के टॉड, द्वितीय 370-1, जो बहुधा वर सरदार की रखैलें हो जाती। ज. डि. लै., 1927, 2-3.
  10. दे. रा. 285, किस प्रकार मृत व्यक्ति की पत्नी ने अपना बुरका उतारकर फेंका और शोकाकुल होकर अपने बाल विखेर लिये, शोक प्रकट करने की अवधि की लम्बाई और उसके प्रदर्शन के स्वरूप के लिये, फ्रेम्प्टन, 130.
  11. थाम्पसन 19, किस प्रकार सिकन्दर के सैनिकों ने पंजाब में इसका प्रचलन पाया।
  12. फ्रेम्प्टन, 127 किस प्रकार अनेक पत्नियों के साथ जलाते समय प्रिय पत्नी को अपनी गर्दन पति की बांह पर रखने दिया जाता।
  13. चित्तौड़ के राजा रतनसेन की दो उप पत्नियों की कथा तुलनीय है जिसमें वे दोनों बलिदान की अन्तिम क्रिया में जीवन-पर्यन्त की अपनी आपसी कटुता और झगड़े भूल गई। दोनों पति के शव के अगल-बगल लकल सद्भावनापूर्वक बैठी और शान्ति से दोनों रानियां ज्वालाओं की भेंट हो गई। पद्मावत (हि.), 295.
  14. इब्नबतूता के वर्णन के लिए, कि. रा., द्वितीय 13-14
  15. अतिशय क्रूरता और शौर्य तथा सद्भावना की कमी के उदाहरण के लिए चन्देरी के भैया पूरनमल का मामला देखिए, कबीलों के आपसी युद्धों में राजपूतों के जौहर के लिये टॉड, द्वितीय, 744.

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 69-75
Manuscript Number : GISRRJ192420
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

सन्नी देवल दास, "सल्तनतकालीन भारतीय हिन्दू स्त्रियों की स्थिति", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 2, pp.69-75, March-April.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ192420

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