Manuscript Number : GISRRJ19245
महाकवि भास के रामायणाश्रित रूपकों में काव्यशास्त्रगतौचित्य विमर्श
Authors(1) :-अपर्णेश कुमार शुक्ल संस्कृत साहित्य में प्राचीनकाल से ही काव्य का एक सर्वमान्य एवं सर्वथा निर्दुष्ट लक्षण निर्धारण हेतु आचार्यों ने प्रयास किया है। काव्य-प्रयोजन, काव्य-हेतु इत्यादि विषयों पर भी विद्वानों में मतभेद पाया जाता है। काव्य समीक्षा की दृष्टि से रस, रीति, अलंकार, ध्वनि, वक्रोक्ति एवं औचित्य ये छः सम्प्रदाय महत्वपूर्ण माने गये हैं। सहृदयों के हृदय में प्रसुप्त शोक नामक स्थायी भाव को जागृत कर करुण रस को सर्वतोभावेन निष्पन्न कर रहा है।
अपर्णेश कुमार शुक्ल संस्कृत, साहित्य, औचित्य, गद्य, पद्य, नाटक, महाकाव्य, खण्डकाव्य, चम्पूकाव्य, काव्यशास्त्र, साहित्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, नेहरू महाविद्यालय ललितपुर, सम्बद्ध-बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी, भारत
क्रियायां कारके लिङ्गे वचने च विशेषणे।
उपसर्गे निपाते च काले देशे कुले व्रते।
तत्त्वे सत्त्वेऽप्यभिप्राये स्वभावे सारसङ्ग्रहे।।
प्रतिभायामवस्थायां विचारे नाम्न्यथाशिषि।
काव्यस्याङ्गेषु च प्राहुरौचित्यं व्यापि जीवितम्।। औचित्यविचारचर्चा-8-10
Date of Publication : 2019-07-30
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Page(s) : 11-15
Manuscript Number : GISRRJ19245
Publisher : Technoscience Academy
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