महाभारत में वर्णित राजधर्म की समकालीन समाज में उपादेयता

Authors(1) :-अमरजीत पाण्डेय

लोकत्रन्त्रात्मक व्यवस्था में शासन का स्वरूप विकेन्द्रित है। कभी-कभी यह केन्द्रित व्यवस्था की ओर भी अग्रेशित दिखता है। इस शासन में वोट की राजनीति करने वाले इसे संख्या वाद पर तौलते है। इस व्यवस्था के मूल तत्व को ही भूल जाते है आज जनहित के कार्य हो या न हो अपने हित के कार्य को महत्व दिया जाता है। इसलिए आज शान्तिपर्व के राजधर्म के अनुपालन की अत्यधिक आवश्यकता है।

Authors and Affiliations

अमरजीत पाण्डेय
शोधार्थी, संस्कृत विभाग, का0सु0 साकेत पी0जी0 कालेज, अयोध्या।, भारत

लोकत्रन्त्रात्मक, राजनीति, शान्तिपर्व, राजधर्म, महाभारत।

  1. महाभारत आदि पर्व 62/53
  2. प्रोफेसर द्वारकादासः महाभारत का अर्थः वाग्देवी प्रकाशन बीकानेर।
  3. महाभारत शांति पर्व 56/2
  4. महाभारत शांति पर्व 56/3
  5. शांति पर्व 56/3
  6. शांति पर्व 56/14
  7. शांति पर्व 56/15
  8. शांति पर्व 56/16
  9. शांति पर्व 56/17
  10. शांति पर्व 56/20, 21
  11. शांति पर्व 56/40
  12. शांति पर्व 56/44, 45, 46
  13. शांति पर्व 91/13
  14. शांति पर्व 91/32-40
  15. शान्तिपर्व 57/115

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019
Date of Publication : 2019-08-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 22-27
Manuscript Number : GISRRJ19247
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

अमरजीत पाण्डेय, "महाभारत में वर्णित राजधर्म की समकालीन समाज में उपादेयता", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 4, pp.22-27, July-August.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19247

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