वर्ण - व्यव्स्था

Authors(1) :-लक्ष्मण तिवारी

वैदिककालीन वर्ण – व्यवस्था सामान्यतः कर्म पर आधारित थी, जिनका विभाजन गुण एवं कर्म के आधार पर किया गया था, न कि जन्म के आधार पर। स्मृतिकार मनु ने भी उपर्युक्त चारों वर्णों के पृथक् – पृथक् कर्म बताए हैं। जिनमें ब्राह्मण का कर्त्तव्य अध्ययन करना, अध्ययन कराना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना एवं दान लेना है। क्षत्रिय का कर्त्तव्य प्रजाओं की रक्षा करना आदि है। वैश्य का कर्त्तव्य पशुओं की रक्षा करना आदि। शूद्र का कर्त्तव्य चारों वर्णौं की निष्कपट होकर सेवा करना बताया गया है।

Authors and Affiliations

लक्ष्मण तिवारी
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग (कला संकाय), काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उत्तरप्रदेश)भारत।

वर्ण, व्यवस्था, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, सुवर्ण।

  1. ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः ।
  2. ऊरु तदस्य यद् वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ॥ ऋग्० 10.90 । यजु० 31.11
  3.  यजु० 30.5
  4.  मनुस्मृति 1.31
  5.  मनुस्मृति 1.87
  6.  मनुस्मृति 1.88
  7. .मनुस्मृति 1.89
  8.  मनुस्मृति 1.90
  9.  मनुस्मृति 1.91
  10.  श्रीमद्भगवद्गीता 4.13

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019
Date of Publication : 2019-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 80-83
Manuscript Number : GISRRJ19271
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

लक्ष्मण तिवारी , "वर्ण - व्यव्स्था", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 2, Issue 6, pp.80-83, November-December.2019
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ19271

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