आदिशंकराचार्य के उपनिषद्भाष्यों एवं गीता-भाष्य में भक्तितŸव

Authors(2) :-डॉ. जी. एल. पाटीदार, संगीता कुमारी

भक्ति मानव जीवन की सर्वश्रेष्ठ संपदा है। साक्षात् ईश्वर के दर्शन करने-कराने का प्रमुख माध्यम भी भक्ति ही है। भक्तितत्त्व भौतिक जगत से जुड़े हुए हमारे अस्तित्व-बोध को आध्यात्मिक जगत की परम आनंदानुभूति से जोड़ने का मध्यम माध्यम है। मनुष्य के भीतर प्राणों का जो छंदमय स्पंदन है, वही मनुष्य को भक्ति की ओर आकर्षित करता है। हमारे मन में संपूर्ण जीव-जगत के प्रति जो ममत्व भाव उत्पन्न उद्भव होता रहता हैं, वहीँ भाव हमें मनुष्य बनता हैं। विना भक्ति के मानवता जीवित नहीं रह सकती हैं। प्रस्तुत लघुशोध पत्र में आदिशंकराचार्य के मत में भक्तितत्त्व को परिभाषित करते हुए, वर्त्तमान उपादेयता और महत्ता की ओर ध्यान देते हुए, सार्वभौमिक सत्ता में जीव-जगत के रहस्य को समझने में भक्ति की उपयोगिता की ओर ध्यानाकर्षण किया गया है। भक्तियोग के विना मानव कभी भी मानव बन ही नहीं सकता हैं। भक्ति के बिना पुत्र पिता के लिए आदर्श नहीं बन सकता है न शिष्य गुरु के लिए और न जीव जगत के लिए। जीवन और अस्तित्त्व उन्हीं का सार्थक हैं जिन्होंने इस भक्तियोग को जीया-समझा हैं। सम्पूर्ण विश्व एक है मैं भी एक हूँ और हमारा ईश्वर भी एक है यह भाव केवल भक्तितत्त्व से ही समझा जा सकता है।

Authors and Affiliations

डॉ. जी. एल. पाटीदार
सहायक आचार्य , संस्कृत विभाग मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय उदयपुर
संगीता कुमारी
शोधार्थी संस्कृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय

धर्म, भक्ति, आत्मा, उपनिषद्, ब्रह्म, दर्शन, परमात्मा, जीव, कर्म, भाष्य, उपासना, ईश्वर, गीता, ज्ञान, इत्यादि।

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 2 | March-April 2020
Date of Publication : 2020-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-07
Manuscript Number : GISRRJ20321
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. जी. एल. पाटीदार, संगीता कुमारी, "आदिशंकराचार्य के उपनिषद्भाष्यों एवं गीता-भाष्य में भक्तितŸव ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 2, pp.01-07, March-April.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ20321

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