Manuscript Number : GISRRJ2032113
शैव दर्शन को अभिनवगुप्त का अवदान
Authors(1) :-डाॅ0 शालिनी साहनी भारत वर्ष का संास्कृतिक बौद्धिक इतिहास बिना कश्मीर के पूरा नही हो सकता। कश्मीर सभी कालखण्डांे में सभी प्रदेशोें से जुडा रहा । कश्मीर शैव, शाक्त, वैष्णव समस्त दर्शनों का केन्द्र रहा है। वेदान्त मीमाँसा न्याय आदि का भी केन्द्र रहा है। कश्मीरी आचार्याें के अवदान के बिना भारतीय ज्ञान परम्परा का अध्ययन अपूर्ण और भ्रामक सिद्ध होगा। ऐसे ही एक क्रान्तदर्शी , कवि दार्शनिक, काव्यशास्त्री, चिन्तक, साधक एवं सम्यता मूलक विमर्श को समाज के समक्ष रखने वाले सर्वज्ञ, विलक्षण प्रतिभा चक्षुओं से युक्त आचार्य के अवदान पर दृष्टि डालना अपेक्षित हैं। वह आचार्य अभिनवगुप्त पाद है। एक दार्शनिक के रूप में उनकी मान्यतायें अदभुत है। वे युक्ति के स्थान पर अनुभव पर बल देते है वे श्रुति को अनुभूति के ऊपर नही रखते । अद्वैत वाद में युक्ति के आधार पर संशोधन करते है। वे माया मिथ्या के संसार का खण्डन करते है। उनका कथन है कि यदि चेतना सत् है तो यह नाम रूपात्मक संसार मिथ्या नहीं हो सकता हैं। उन्होंने संसार के नकार की परम्परा को स्वीकार की परम्परा के रूप में रखा हमारे समक्ष । अभिनवगुप्त के दार्शनिक विश्व की यात्रा करने के लिए कश्मीर में शैव दर्शन की बहुत लम्बी पराम्परा से साक्षात्कार करना होगा। अभिनवगुप्त से पहले के काल में जाने पर ही उनके चिन्तन जगत के आधार बिन्दुओं को समझा जा सकता है। यह कश्मीर में भाषा कला और दर्शन को सूर्याेदय काल था। अभिनवगुप्त ने शैव दर्शन के हर आयाम पर लिखा। तंत्रालोक, परात्रिषिंका विवरण, परमार्थ सार, तंत्रसार और गीतार्थ सग्रंह उनके प्रचलित ग्रन्थ है। परमार्थ सार शेष की कारिका पर आधारित है, तो गीतार्थ संग्रह भगवतगीता पर उनकी टिप्पणी है। उनका कथन है कि सभी प्रकार के दुःखांे से मुक्ति केवल परम्शिव को साक्षात देखने से ही सम्भव है उन्हंे आपत्ति नही कि शिव को कोई कृष्ण के रूप में सम्बोधित करे। कौरव पाण्डव युद्ध को उन्होंने विद्या और अविद्या के बीच संघर्ष बताया है। प्रत्यभिज्ञा विमर्श उनके प्रिय विषय प्रत्यभिज्ञा को समझाने वाला महत्वपूर्ण गं्रथ है। वहाॅ वे कहते है कि अज्ञान के कारण जिसे भूल गए है उस परमशिव के साथ पुनः साक्षात्कार कैसे हो । अभिनवगुप्त ऐसे प्रतिभावान दार्शनिक और चिंतक थे । जिन्हांेने अनेक दार्शनिक मान्यताओं और साधना पद्धतियांे का समन्वय करते हुये एक समग्र दर्शन प्रस्तुत किया, ऐसा दर्शन जिसे समाज को हजारांे वर्ष से चली आ रही अतिरंजनाआंे से मुक्त होने का मार्ग प्रशस्त किया।
डाॅ0 शालिनी साहनी शैव, कश्मीर, अभिनगुप्त, दर्शन, परमार्थ, शैव, शाक्त, वैष्णव। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 2 | March-April 2020 Article Preview
संस्कृत विभाग, आर0एम0पी0पी0जी0 कालेज, सीतापुर, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2020-04-30
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Page(s) : 141-147
Manuscript Number : GISRRJ2032113
Publisher : Technoscience Academy
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