Manuscript Number : GISRRJ203312
भारतीय दर्शन में परमार्थस्वरुपानुभूति
Authors(1) :-डॉ0 वन्दना द्विवेदी साधक शास्त्राभ्यास एवं गुरुसपर्या के राहित्य से बौद्ध एवं पौरुष ज्ञानलाभ नहीं कर सकताए क्या उसको यथार्थ आत्मस्वरूप की अनुभूति कभई नहीं हो सकतीघ् जबकि जीव शिव का ही रुप माना जाता हैए तो एसी दशा में सीमित रुप से ही भले क्यों न होए आत्मप्रकाश तो रहता ही होगा। जब यह रहता है तो सीमित रुप में ही क्यों न होए अज्ञान;मलद्ध का नाश करता ही होगाघ् इस प्रकार भारतीय दर्शन का प्रतिवाद्य ही आत्मावलोकन एवं आत्मानुभूति है। सभी शास्त्र अपने ढंग से इसी के प्रतिपादन में सन्नद्ध हैं।
डॉ0 वन्दना द्विवेदी भारतीय दर्शनॉ परमार्थस्वरुपानुभूतिॉ शास्त्राभ्यासॉ गुरुसपर्या। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020 Article Preview
असि0 प्रोफेसरए संस्कृतए विभागए नवयुग कन्या महाविद्यालयए लखनऊॉ उत्तर प्रदेशॉ भारत
Date of Publication : 2020-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 53-57
Manuscript Number : GISRRJ203312
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203312