Manuscript Number : GISRRJ203351
आद्य संस्कृताभिलेख “रुद्रदामन के गिरनार (जूनागढ़) प्रस्तराभिलेख“ का साहित्यिक महत्व
Authors(1) :-डाॅ. शैलजा रानी अग्निहोत्री
अभिलेख अंकन की परम्परा बहुत प्राचीन समय से रही है; उपलब्ध पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक साक्ष्य इस बात की पुष्टि करते हैं। प्राचीनकाल में राजा-महाराजाओं द्वारा किसी महत्वपूर्ण घटना अथवा अपनी युद्ध विजय की चिरस्मृति हेतु एवं आत्मप्रशंसा में विभिन्न आधार वस्तुओं पर अभिलेख उत्कीर्ण कराए जाते थे। ये अभिलेख अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण होते थे। राजा रुद्रदामन का गिरिनगर अथवा गिरनार नामक स्थान पर एक प्रस्तर खण्ड पर उत्कीर्ण कराया गया प्रस्तराभिलेख विभिन्न दृष्टियों से अपना महत्व रखता है। संस्कृत देववाणी तथा अन्यान्य भाषाओं की जननी होने से अतिप्राचीन भाषा रही है। किन्तु अभिलेखों में इस भाषा का प्रयोग प्रथम शताब्दी से होने लगा, ऐसा ऐतिहासिक व साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात होता है। रुद्रदामन का यह अभिलेख 150 ई. का है, जो कि संस्कृत गद्य शैली में उत्कीर्ण मिला है। हालाँकि संस्कृत का प्रचलन बहुत पहले से रहा है, परन्तु अभिलेख (शिला या प्रस्तर पर अभिलेख) लेखन में संस्कृत का सर्वप्रथम प्रयोग इसी अभिलेख में मिलता है। अतः यह संस्कृत भाषा में अंकित आद्य- प्रथम अभिलेख होने का गौरव रखता है। अभिलेख में निहित सामग्री का साहित्यिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्व देखा जा सकता है। अभिलेख में काव्यशास्त्रीय तथा साहित्यिक सामग्री की प्रचुरता एवं उत्कृष्टता है। प्रस्तुत आलेख में इस प्रस्तराभिलेख का साहित्यिक दृष्टि से पर्यालोचन कर उसे विवेचित किया गया है।
डाॅ. शैलजा रानी अग्निहोत्री
सह-आचार्य संस्कृत, सनातन धर्म राजकीय महाविद्यालय, ब्यावर।
प्रस्तराभिलेख, प्रस्तरखण्ड, शिलालेख, शिलाखण्ड, आद्य संस्कृताभिलेख, उत्कीर्ण, संस्कृत भाषा, अभिलेख लेखन, लिपिक, जीर्णोद्धार, महाक्षत्रप रुद्रदामन, अलंकृत गद्यकाव्य, काव्यशास्त्रीय सिद्धान्त, सुदर्शन झील, सामासिक शब्दावली गद्य-पद्यात्मक काव्य।
- देखें- (1) अभिलेख माला, ‘रमा हिन्दी व्याख्योपेता’, व्याख्याकार-झा बन्धु, चैखम्बा विद्याभवन, वाराणसी, भूमिका भाग, पृष्ठ 40-41 ‘अभिलेखों में प्रयुक्त भाषाएँ’।
- प्राचीन भारतीय लिपि एवं अभिलेख: डाॅ. गोपाल यादव, कला प्रकाशन, वाराणसी, प्रथम संस्करण - 2010
- प्राचीन भारत का इतिहास: विद्याधर महाजन, एस चन्द एण्ड कम्पनी लि., संस्करण-2000, अध्याय-2, ‘प्राचीन भारत के इतिहास के स्रोत’- “शिलालेख“।
- अभिलेख मालान्तर्गत प्रथम अभिलेख- “गिरिनगरे रुद्रदाम्नः प्रस्तराभिलेखः“, पृष्ठ 1-5
- वही, भूमिका भाग, पृष्ठ-34 पर उल्लेखित एवं गूगल- ीजजचेरूध्ध्जवचचमतेदवजमे.उंपदण्ै3ण्ंच.ेवनजीण्.1ण्ंउं्रवदंूेण्बवउ तथा ीजजचेरूध्ध्ीपण्ुनवतंण्बवउ
- अभिलेखमाला, गिरिनगर अभिलेख, पृष्ठ संख्या 1, संस्कृत गद्य पंक्ति 6-7
- वही, पृष्ठ-4, संस्कृत गद्य पंक्ति 4-6
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 10-12
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 2
- वही, पृष्ठ-2, संस्कृत गद्य पंक्ति 5-6 एवं पृष्ठ-3, संस्कृत गद्य पंक्ति 1-4
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 6-7
- वही, पृष्ठ-4, संस्कृत गद्य पंक्ति 6
- वही, पृष्ठ-4, संस्कृत गद्य पंक्ति 2
- वही, पृष्ठ-5, संस्कृत गद्य पंक्ति 4
- वही, पृष्ठ-5, संस्कृत गद्य पंक्ति 5-6
- वही, पृष्ठ-3, संस्कृत गद्य पंक्ति 10
- वही, पृष्ठ-3, संस्कृत गद्य पंक्ति 6
- वही, पृष्ठ-3, संस्कृत गद्य पंक्ति 5
- वही, पृष्ठ-3, संस्कृत गद्य पंक्ति 7
- वही, पृष्ठ-4, संस्कृत गद्य पंक्ति 9
- वही, पृष्ठ-4, संस्कृत गद्य पंक्ति 5
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 10-11
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 2-3
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 14
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 8
- वही, पृष्ठ-1, संस्कृत गद्य पंक्ति 14
- ईमेल - ंहदपीवजतपेींपसरं1/हउंपसण्बवउ
Publication Details
Published in : Volume 5 | Issue 1 | January-February 2022
Date of Publication : 2022-02-07
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 201-206
Manuscript Number : GISRRJ203351
Publisher : Technoscience Academy
ISSN : 2582-0095
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URL : https://gisrrj.com/GISRRJ203351



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