श्रीमद्भगवद्गीता में पुनर्जन्म की अवधारणा

Authors(1) :-पूनम यादव

भारतीय पुनर्जन्म का चिन्तन मानवमात्र को सन्मार्गोंन्मुखी बनाने के लिए एक शिव शिक्षा है। मानव के ज्ञान के उन्मेष उसकी सद्कृति से ही प्रस्फुरित होता है। व्यक्ति की सद्कृति उसे पुनर्जन्म में भी दैवीय वृत्ति प्रदान करती है। जो व्यक्ति विशेष के आत्मा की मुक्ति का साधन बनती है। इस दृष्टि से गीता का पुनर्जन्म चिन्तन मानव को सद्वृत्ति देते हुए उसके कल्याण का साधन है।

Authors and Affiliations

पूनम यादव
शोधच्छात्रा, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उŸार प्रदेश,भारत

श्रीमद्भगवद्गीता, वेदव्यास, महाभारत, भीष्मपर्व, ब्रह्म।

. गीता 2/70
2.गीता 8/15
3.गीता 4/5
4.अमरकोष - 1/4/30
5. गीता 8/16
6. गीता 4/5
7.गीता 15/3
8.कठ0 1/2/6
9. श्रीमद्भागवत 3/31/44
10. महाभारत
11. गीता 2/12
12. गीता 2/13
13.गीता 2/20
14. गीता 2/22
15. गीता 2/23
16. गीता 2/27
17. गीता 14/5
18. गीता 8/6
19.कठोपनिषद् 2/2/7
20. गीता 18/16
21.गीता 14/18

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020
Date of Publication : 2020-06-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 42-48
Manuscript Number : GISRRJ20337
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

पूनम यादव, "श्रीमद्भगवद्गीता में पुनर्जन्म की अवधारणा", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 3, pp.42-48, May-June.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ20337

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