किरातार्जुनीय और शिशुपाल की संक्षिप्त कथा: एक अध्ययन

Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति

महाराज युधिष्ठिर जूये में हार जाने से भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव तथा द्रौपदी के साथ द्वैतवन नामक जङ्गल में निवास करते थे, उस समय उन्होंने दुर्योधन का समाचार जानने के लिये एक वनवासी (किरात-वनेचर) को ब्रह्मचारी के वेष में भेजा था, वह सब हाल जानकर महाराज युधिष्ठिर के पास आया और कहने लगा- हे महाराज दुर्योधन इस समय राज्य का नीतिपूर्वक शासन कर रहा है, ‘मै राजा हूँ मेरा यही धर्म है’ ऐसा समझता हुआ शत्रु या पुत्र जो हो उसे धर्मशास्त्रानुसार दण्ड देता है। उसके यहाँ बड़े-बड़े राजा लोग आकर दरवार में कर देते हैं तथा जो आदेश करता है उसे सब पूरा करते हैं, उसके राज्य में सर्वत्र कृषि उत्तम रूप से होती है, और प्रजा प्रसन्नता से समय-समय पर कर देती है। वह दुःशास को युवराज बनाकर स्वयं यज्ञादि करता रहता है, इसलिये अब आप उसे जीतने के लिये कोई प्रबल उपाय करें।

Authors and Affiliations

डाॅ0 ज्योति
एम.ए., पीएच.डी. (संस्कृत) बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार), भारत।

  1. निपातिसुहृत्स्वामिपितृव्यभ्रातृमातृलम्। पाणिनीयमिवाऽऽलोकि धीरैस्तत् समराजिरम्।।    -19/75.
  2. शब्दार्थों सत्कविरिय द्वयं विद्वानपेक्षते।-2/86
  3. वही पृष्ठ। संशयाय दधतोः सरूपतां दूरभिन्नफलयोः क्रियां प्रति। शब्दशासनविदः समासयोर्विग्रहं व्यवससुः स्वरेण ते।।   -14/24.
  4. पश्वाशत्सु कलौ षट्सु पश्वशतासु च। समासु समतीतासु शकानामपि भूभुजाम्।।
  5. गतान्पशूनां सहजन्मबन्धुतां गृहाश्रयं प्रेम वनेषु विभ्रतः। ददर्श गोपानुपधेनु पाण्डवः कृतानुकरानिव गोभिरार्जवे।।
  6. आर्जवे विधेयत्वे गोभिः पशुभिः कृतानुकाराननुकृतानिव स्थितानित्युत्प्रेक्षा। -वही, 4.13

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 4 | July-August 2020
Date of Publication : 2020-07-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 40-43
Manuscript Number : GISRRJ20347
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 ज्योति, "किरातार्जुनीय और शिशुपाल की संक्षिप्त कथा: एक अध्ययन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 4, pp.40-43, July-August.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ20347

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