Manuscript Number : GISRRJ20348
हठयोगप्रदीपिका में वस्तिकर्म की विधि एवं उसका महत्व
Authors(1) :-मनमोहन कुमार वस्तिकर्म दो प्रकार का है-पवनवस्ति तथा जलवस्ति। नौलिकर्म द्वारा अपानवायु को ऊपर खींचकर पुनः मयूरासन से त्यागने को ‘वस्तिकर्म’ करते हैं। पवनवस्ति पूर्णतः सिद्ध हो जाने पर जलवस्ति सुगम हो जाती है क्योंकि जल को खींचने का कारण पवन ही होता है। वस्तिकर्म के प्रभाव से गुल्म, प्लीहा, उदर और कफ-पित्त जैसे सम्पूर्ण रोग नष्ट होते हैं जो साधक के सप्त धातुओं, दस इन्द्रियों और अंतःकरण को प्रसन्न करता है।
मनमोहन कुमार Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 4 | July-August 2020 Article Preview
शोध छात्र, विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग, बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार)
Date of Publication : 2020-07-30
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Page(s) : 44-54
Manuscript Number : GISRRJ20348
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ20348