Manuscript Number : GISRRJ20349
कालिदास के नाटकों मंे चित्रकला एक परिदृश्य
Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति कपूर किसी वस्तु को देखकर चित्र की जो आनन्दमयी अनुभूति होती है, वही सौन्दर्यानुभूति कहलाती है। चित्र, मूर्ति, स्थापत्य, संगीत, काव्य सभी में कलाकार अपने उसी अनुभूत आनन्द को विभिन्न साधनों से मूर्ति रूप देना चाहता है। अतः सभी में रमणीयता रहती ही है। यद्यपि रमणीयार्थ प्रतिपादकता केवल काव्य में मानी गयी है; किन्तु अन्य कलाओं में इसका निषेध तो नहीं किया गया है। कला की यह श्रेष्ठता ही संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रमाण बनती है।
डाॅ0 ज्योति कपूर संस्कृत, कालिदास, नाटक, चित्रकला, सत्यमेव, काव्य। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020 Article Preview
एसोसियेट प्रोफेसर, समन्वयक संस्कृत विभाग, सदनलाल सांवलदास खन्ना, स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय,
इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2020-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 64-70
Manuscript Number : GISRRJ20349
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ20349