कालिदास के नाटकों मंे चित्रकला एक परिदृश्य

Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति कपूर

किसी वस्तु को देखकर चित्र की जो आनन्दमयी अनुभूति होती है, वही सौन्दर्यानुभूति कहलाती है। चित्र, मूर्ति, स्थापत्य, संगीत, काव्य सभी में कलाकार अपने उसी अनुभूत आनन्द को विभिन्न साधनों से मूर्ति रूप देना चाहता है। अतः सभी में रमणीयता रहती ही है। यद्यपि रमणीयार्थ प्रतिपादकता केवल काव्य में मानी गयी है; किन्तु अन्य कलाओं में इसका निषेध तो नहीं किया गया है। कला की यह श्रेष्ठता ही संस्कृति की श्रेष्ठता का प्रमाण बनती है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 ज्योति कपूर
एसोसियेट प्रोफेसर, समन्वयक संस्कृत विभाग, सदनलाल सांवलदास खन्ना, स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय, इलाहाबाद,उत्तर प्रदेश, भारत।

संस्कृत, कालिदास, नाटक, चित्रकला, सत्यमेव, काव्य।

  1. . आचार्य भरत, नाट्यशास्त्र 1.113 बटुकनाथ शर्मा, बनारस।
  2. भर्तृहरि, नीतिशतक, श्लोक 12.
  3. वात्सायन, कामसूत्र, अधिकरण-1, अध्याय-3
  4. कालिदास ग्रन्थावली - अभिज्ञानशाकुन्तलम्- द्वितीय अंक, श्लोक 9, पेज-371
  5. चित्रकर्मपरिचयेनांगेषु ते आभरणविनियोगं कुर्वेः-अभिज्ञानशाकुन्तलम् - चतुर्थ अंक- पेज नं0 400
  6. अभिज्ञानशाकुन्तलम्- षष्ठ अंक, पेज नं0 439
  7. अभिज्ञानशाकुन्तलम्- षष्ठ अंक, पेज नं0 440
  8. यद्यत साधु न चित्रे स्यात् क्रियते तत्तदन्यथा।  तथापि तस्या लावण्यं रेखया किंचिदन्वितम्।। अभिज्ञान शाकुन्तलम्-षष्ठ अंक श्लोक-14,पेज नं0 440
  9. अभिज्ञानशाकुन्तलम् - पेज नं0- 440
  10. स्विन्नांगुलिविनिवेशो रेखाप्रान्तेषु दृश्यते मलिनः।   अश्रु च कपोलपतितं दृश्यमिदं वर्णिकोच्छवासात्।। अभिज्ञान शाकुन्तलम्- षष्ठ अंक श्लोक-15
  11. अभिज्ञान शाकुन्तलम्- षष्ठ अंक श्लोक-441
  12. अभिज्ञान शाकुन्तलम्- षष्ठ अंक श्लोक-17
  13. अभिज्ञान शाकुन्तलम्- षष्ठ अंक श्लोक-18
  14. अभिज्ञान शाकुन्तलम्- षष्ठ अंक पेज- 443
  15. प्रजागरात् खिलीभूतस्तस्याः स्वप्ने समागमः।   वाष्पस्तु न ददात्येनां दु्रष्टुं चित्रगतामपि।।  अभिज्ञान शाकुन्तलम्-षष्ठ अंक, श्लोक-22
  16. मालविकाग्निमित्रम्- प्रथमोऽक पेज नं0 571
  17. मालविकाग्निमित्रम्- प्रथमोऽक पेज नं0 571
  18. मालविकाग्निमित्रम्- द्वितीय अंक श्लोक-2, पेज-587
  19. मालविकाग्निमित्रम्- चतुर्थ अंक पेज-623
  20. नन्वेष चित्रगतो भर्ता - मालविकाग्निमित्र चतुर्थ अंक- पेज नं0 623
  21. मालविकाग्निमित्र- चतुर्थ अंक, पेज 624
  22. चित्रगतं भर्तारं परमार्थतः संकलप्यासूयति
  23. कुप्यसि कुवलनयने चित्रार्पित चेष्टया किमेतन्मे-मालविकाग्निमित्र-चतुर्थ अंक, श्लोक-10, पेज-625
  24. विक्रमोर्वशीयम्- द्वितीय अंक पेज-496
  25. न च सुवदनामालेख्येऽपि प्रियामसमाप्यं तां।
  26.   मम नयनोरूद्वाष्पत्वं सखे न भविष्यति।। विक्रमोर्वशीयम्- द्वितीय अंक, श्लोक -10, पेज-497
  27. विक्रमोर्वशीयम्- द्वितीयअंक- पेज 486

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020
Date of Publication : 2020-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 64-70
Manuscript Number : GISRRJ20349
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 ज्योति कपूर, "कालिदास के नाटकों मंे चित्रकला एक परिदृश्य", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 1, pp.64-70, January-February.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ20349

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