कालिदास के काव्यों में धर्म-विषयक: कर्म सिद्धान्त एवं पुनर्जन्म

Authors(1) :-डाॅ0 अंजलि उपाध्याय

संस्कृति निर्माण में धर्म एवं नीति का महत्त्वपूर्ण योग रहता है। ये दोनों समाज के दृढ़ आधारस्तम्भ है। जिस प्रकार पहियों के सहयोग के बिना रथ अपने गन्तव्य पथ पर अग्रसर नहीं हो सकता, उसी प्रकार धर्म एवं नीति के बिना संस्कृति का निर्माण असम्भव है। धर्म मानव-जीवन के चार पुरुषार्थों- धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष में प्रथम एवं मूर्धन्य है। इसके द्वारा ही अर्थ, काम एवं मोक्ष की सिद्धि होती है। इसी कारण आचार्यों ने इसे अभ्युदय एवं निःश्रेयस-सिद्धि का मूल माना है। कालिदास के अनुसार कर्म के दो प्रकार होते है- शुभ कर्म और अशुभ कर्म। इन द्विविध कर्मों का धर्म तथा अधर्म अथवा पुण्य एवं पाप कर्म की संज्ञा प्रदान की जाती है। जो कर्म आसक्तिपूर्वक काम, क्रोध, लोभ, मोह की भावना से किये जाते है, उनके किये जाने पर मनुष्य की बुद्धि में संस्कार पड़ जाते है, ये संस्कार ही कर्माशय अथवा कर्म संस्कार कहलाते है। कालिदास ने स्पष्ट शब्दों में स्वीकृत किया है कि प्रसूत पुण्यकर्माशय वाले प्राणियों की अभिलाषाएँ शीघ्र ही परिपक्व हो जाती है। इसके विपरीत पाप या अशुभ कर्मों से अशुभ या पाप कर्माशय बनते है, जो दुःखात्मक फलभोग देते है। जैसे नरक योनि में जन्म लेना, पशुतिर्यक, आदि शरीरों की प्राप्ति तथा प्रबल दुःख भोग। इन शुभाशुभ कर्मों के फल वर्तमान जीवन (दृष्टजन्म) तथा भविष्यज्जीवनों (अदृष्ट जन्म) में भोगे जाने योग्य होते है। अतः कालिदास की नाट्यकृतियों में कर्म-सिद्धान्त विषयक ऐसे विचार प्रचुर रूप में उपलब्ध होते है, जो कर्म-विपाक सिद्धान्त का अविकल प्रतिपादन करते है। उन्होंने अपनी नाट्यकृतियों में कर्मफल मीमांसा को प्रसंगानुकूल अनेक स्थलों पर अभिव्यक्ति दी है। जिनका संकलन करके विचार करने पर कवि द्वारा स्वीकृत कर्म-सिद्धान्त का वास्तविक स्वरूप स्पष्ट हो जाता है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 अंजलि उपाध्याय
पी0एच-डी0 (संस्कृत)

कालिदास, काव्य, धर्म, कर्म, सिद्धान्त, पुनर्जन्म।

  1. महाकवि कालिदास की दार्शनिकता- डाॅ0 उमारानी त्रिपाठी, राहुल पब्लिशिंग हाउस, 348/6, शास्त्री नगर, मेरठ, 2004
  2. कालिदास के ग्रन्थों पर आधारित भारतीय संस्कृति- डाॅ0 गायत्री वर्मा, चैखम्बा, वाराणसी।
  3. कालिदास की कृतियों में धर्मशास्त्रीय विषय- डाॅ0 श्रीपति त्रिपाठी, नाग प्रकाशक, जवाहर नगर, दिल्ली।
  4. कालिदास और उनका युग- भगवतशरण उपाध्याय, इलाहाबाद, 1956
  5. कालिदास और भवभूति के नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन- डाॅ0 सुरेन्द्र देव शास्त्री, साहित्य भण्डार, मेरठ, 1969
  6. संस्कृत नाटकों में समाज चित्रण - डाॅ0 चित्रा शर्मा
  7. मनु का राजधर्म - डाॅ0 श्यामलाल पाण्डेय
  8. हिन्दू संस्कार - डाॅ0 राजबली पाण्डेय

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020
Date of Publication : 2020-10-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 129-133
Manuscript Number : GISRRJ2035213
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 अंजलि उपाध्याय , "कालिदास के काव्यों में धर्म-विषयक: कर्म सिद्धान्त एवं पुनर्जन्म", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 5, pp.129-133, September-October.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ2035213

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