संस्कृत साहित्य में श्रीराधा विषयक विविध मान्यताएं एक अनुशीलन

Authors(1) :-डाॅ0 प्रभात कुमार

कृष्ण को आह्लाद या प्रेम प्रदान करने के कारण वह स्वयं आह्लादरूपिणी या प्रेमरूपिणी है। गौड़ीय आचार्यों ने आहलादिनी और प्रेम का सम्बन्ध अपने ग्रन्थों में स्पष्ट किये है। कृष्णदास कविराज अपने ग्रन्थ में प्रेम-तत्त्व को स्पष्ट करते हुए बताया है कि आह्लादिनी का सार प्रेम है, प्रेम का सार भाव और भाव का सार अथवा पराकाष्ठा महाभाव है। श्रीराधा महाभाव स्वरूपा है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 प्रभात कुमार
असिस्टेंट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, नेहरू ग्राम भारती डीम्ड विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश,भारत।

श्रीराधा, संस्कृत, साहित्य, भक्ति, कला, कृष्ण।

  1. मुखमारुतेन त्वं कृष्ण गोरजो राधिकाया अपनयन्। एतासां बल्लवीनामन्यासामपि गौरवं हरसि ।।गाथासप्तशती 1/89
  2. मैवं विभोऽर्हति भवान् गदितुं। नृशंस संत्यज्य र्वविषयांस्तवपादमूलम् ।। भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा। त्यजास्मान् देवो यथाऽऽदिपुरुषो भजते मुमुश्रुन्।। (श्रीमदभागवत 10/29/31)
  3. पुरुषः प्रकृतिश्चाद्यौ राधावृन्दावनेश्वरौ। पद्मपुराण पातालखण्ड 77/48
  4. त्रिगुणमविवेकीविषयः सामान्यमचेतनं प्रसवधर्मि। व्यक्तं तथा प्रधानं तद्विपरीतस्तथा च पुमान् ।। सांख्यकारिका 11
  5. सत्त्वं तत्त्वं परतत्त्वं च तत्त्वत्र्यमहं किल । त्रितत्त्वरूपिणी साऽपि राधिका परदेवता।। बृहद्गोतमीय तत्र पृ0 445
  6. तस्माद्या प्रकृति राधिका नित्या, निर्गुणा सर्वालंकारशोभिता। प्रसन्नाशेष-लावण्य-सुन्दरी आस्मादादीनां जन्मदात्री। पुरुषार्थ बोधिनी उपनिषद ।
  7. मूलप्रकृतिरविकृतिर्महदाद्या प्रकृतिविकृतयः सप्त। षोडशकस्तु विकारो न प्रकृतिर्न विकृतिः पुरुषः ।। सांख्यकारिका 3 4
  8. क. वृषभानुसुता गोपी मूलप्रकृतिरीश्वरी। राधोपनिषद् ख. सृष्टेराधारभूतत्वं बीजरूपोहमच्युतः । ममांगांशस्वरूपात्त्वं मूलप्रकृतिरीश्वरी ।। ब्र0वै0पु0कृ0ख0 15/61
  9. क. अष्टौ प्रकृतयः पुण्पाः कृष्णवल्लभाः । पद्मपुराण पातालखण्ड 70/7 ख. षोडशाधा प्रकृतयः प्रधानायः कृष्णवल्लभाः ।। वही 70/9 6
  10. लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा सावित्री राधिकापरा।। नारदपंचरात्र 1/2 7
  11. क. शिवोऽपि शवतां याति कुण्डलिन्या विवर्जितः । देवीभागवत कवच । ख. त्वया बिना जड़श्चाहं सर्वत्र च न शक्तिमान् सर्वशक्तिस्वरूपा तं त्वमागच्छ ममान्तिकम्। (ब्र०वै0पु0अ0ख0 55/87)
  12. नारायणी सा परमात्मा सनातनी, शक्तिश्च पुंसःपरमात्मनश्च ।। आत्मेश्वरश्चापि यथा च शक्तिमान् तथा बिना स्रष्टुमशक्त एव ।।? (ब्र०वै0पु0ब्र०ख०)
  13. पद्मपुराण उत्तर0 227/51
  14. विष्णुपुराण 6/7/61
  15. वही
  16. त्वं च शक्ति स्वरूपाऽपि सर्वस्त्री-रूपधारिणी। ममांगांशस्वरूपा त्वं मूलप्रकृतिरीश्वरी। ब्र०वै0पु00ख0 15/66
  17. ब्रह्मस्वरूप प्रकृतिर्न भिन्ना यया च सृष्टिः कुरुते सनातनः शिवश्च सर्वा कलया जगत्सु माया च सर्वे च तथा विमोहिता। वही 30/12
  18. सर्वलक्ष्मीस्वरूपासा कृष्णालादस्वरूपी।। पद्मपुराण पातालखण्ड 81/52
  19. तत्कलाकोटिकोट्यंशा ब्रह्मविष्णुमहेंश्वरा। तत्कलाकोटिकोट्यंशा दुर्गाद्यास्त्रिगुणात्मिका ।। वही 69/111-118
  20. ब्रह्मवैवर्तपुराण प्रकृतिखण्ड 55/60-75 एवं हि तस्या शक्तस्त्वनेकघाः आह्लादिनी, सन्धिनी ज्ञानेच्छा क्रियाज्ञा बहुविधाः शक्तयः । तास्वाह्लादिनी वरीयसी परमान्तरगंभूता राधा। राघोपनिषद् 11
  21. यन्नाम्ना नाम्नि दुर्गाहं गुणैगुणवती ह्यहम् । यद्वैभवान् महालक्ष्मी राधा-नित्या पराद्वया। (जीवगोस्वामी कृत ब्रह्मसंहिता, टीका, पृ0 105
  22. चैतन्यचरितामृतलीला 8 म०परि०।
  23. सर्वभावोद्गमोल्लासी मादनाख्यो परात्परः । राजते हलादिनी सारो राधामामेव यः सदा।। (चैतन्यचरितामृत)

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020
Date of Publication : 2020-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 183-188
Manuscript Number : GISRRJ2036710
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 प्रभात कुमार, "संस्कृत साहित्य में श्रीराधा विषयक विविध मान्यताएं एक अनुशीलन", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 3, Issue 6, pp.183-188, November-December.2020
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ2036710

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