प्राचीन भारतीय जन-समितियों का राज्य-शासन में योगदान

Authors(1) :-डाॅ0 विजय कुमार

जन सभाएं तथा संघटित संस्थायें राजनीतिक संगठन के कार्यात्मक स्वरूप का प्रतिनिधित्च करती हैं। जनसमितियाॅ राज्यहीन समुदायों एवं जनजातीय समुदायों में आरम्भ से ही आर्थिक, सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में भूमिका निभाती रही हैै। सभा और समिति को राजा द्वारा संरक्षण प्रदान करने की बात कही गयी है। परवर्ती काल में सभा का स्वरूप बदल गया और वह राजा की परामर्शदात्री परिषद बनकर रह गयी। शतपथ ब्राह्मण के अनुसार राजा वही हो सकता है जिसे अन्य लोग स्वीकार करें। इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि परवर्ती काल में, समिति में साधारण लोगों का प्रवेश लगभग समाप्त हो गया होगा। पूग एक स्थान में रहने वाले विभिन्न व्यापारियों, शिल्पियों तथा व्यावसायिों की संस्था होती थी। पूग शब्द का प्रयोग समूहवाची रूप में प्रयुक्त हुआ है। महाभारत में पूग शब्द का प्रयोग ‘हस्तिपूग’ व शत्रुपूग आदि रूप में हुआ है। वीरमित्रोदय सेना के हस्त्यारोही और अश्वारोही जैसे सैन्य अंगों के लिए पूग शब्द का प्रयोग करता है। कौटिल्य ने कृषि, व्यापार और सैन्य कार्य करने वालों के सामूहिक संस्था को श्रेणी कहा है। सामान्य रूप से कौटिल्य ने इस शब्द का आशय शिल्पकारों की संस्था से भी लगाया है। मेघतिथि वेदज्ञ ब्राह्मण, वणिक, शिल्पकार आदि के संघ को ‘श्रेणी’ कहते हैं।

Authors and Affiliations

डाॅ0 विजय कुमार
विभागाध्यक्ष एवं असि0 प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास विभाग, इ0 सि0 स्0 सं0 से0 राजकीय महाविद्यालय, पचवस, बस्ती, उत्तर प्रदेश,भारत।

सभा, विशः , ऋचा, समिति, पूग, विद्थ, पौर-जनपद, नैगम, जनपद, रज्जुक।

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Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 2 | March-April 2021
Date of Publication : 2021-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 123-128
Manuscript Number : GISRRJ213215
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डाॅ0 विजय कुमार, "प्राचीन भारतीय जन-समितियों का राज्य-शासन में योगदान ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 4, Issue 2, pp.123-128, March-April.2021
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ213215

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