Manuscript Number : GISRRJ214566
संस्कार एवं आश्रम व्यवस्था की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में समीक्षा
Authors(1) :-प्रभा चतुर्वेदी संस्कारों के विवेचन से स्पष्ट होता है कि यद्यपि वर्तमान समय में सुरक्षात्मक दृष्टि से विभिन्न नियम-कानून बनाए गये हैं फिर भी बदलते परिवेश, पाश्चात्य दृष्टिकोण व संकुचित मानसिकता आदि के कारण संस्कारों का वास्तविक स्वरूप एवं उद्देश्य विकृत हो गया है। जिसके कारण आज समाज में पारस्परिक विद्वेष, नैतिक एवं चारित्रिक पतन जैसी विषम प्रवृत्तियाँ दृष्टिगोचर हो रही हैं। यदि इन संस्कारों का समुचित रीति से नियमपूर्वक पालन किया जाए तो प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तित्व का निर्माण तथा आध्यात्मिक प्रवृत्ति सम्भव हो सकती है।
प्रभा चतुर्वेदी संस्कार, व्यवस्था, सदस्य, कर्तव्य, अधिकार, वर्णव्यवस्था, समाज, स्मृति, साहित्य, धर्म। (ख) प्रो. सरिता वाशिष्ठ, महिला और कानून, पृ.132-133 अनु.-झारखण्डी, शिवनाथ, भारतीय ज्योतिष, पृ.733-734 (ख) दयति दोषा मर्यतो वधूयोः परिप्रीता पन्यसा वार्येण । वही, 10/27/12 (ख) कापड़िया, के.एम., भारतवर्ष में विवाह एवं परिवार, पृ.160-162, 172 (ग) आशा रानी व्होरा, औरत कल, आज और कल, पृ.134 (ख) प्रो. सरिता वाशिष्ठ, महिला और कानून, पृ.111, 133-134 (ख) प्रो. सरिता वाशिष्ठ, महिला और कानून, पृ.135-136 (ख) तोमर, प्रो. राम बिहारी सिंह, भारतीय सामाजिक संस्थाएँ, पृ.31-32 (ग) प्रो. सरिता वाशिष्ठ, महिला और कानून, पृ.133-134 (ख) तोमर, प्रो. राम बिहारी सिंह, भारतीय सामाजिक संस्थाएँ, प.35-36 Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021 Article Preview
शोध छात्रा, संस्कृत विभाग, राजकीय महाविद्यालय, कोटा, राजस्थान, भारत।
Date of Publication : 2021-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 92-101
Manuscript Number : GISRRJ214566
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ214566