उपनिषदों की समसामयिक उपादेयता

Authors(1) :-डॉ. सुजीत कुमार

संस्कृत साहित्य की परम्परा में उपनिषदों का अपना एक पृथक् महत्त्व है। उपनिषदों की वर्तमान परिप्रेक्ष्य में प्रासंगिकता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और समकालीन विषय है । उपनिषद् भारतीय दर्शन और आध्यात्मिकता के मूल स्रोतों में से एक हैं, जो मानव जीवन के गहरे प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करते हैं। वे अद्वैत,आत्मा, ब्रह्म, मोक्ष और कर्म जैसे गूढ़ सिद्धान्तों पर आधारित है। यह ज्ञान आज भी मानव जीवन के उद्देश्य और प्रकृति को समझने में मदद करता है। लोग आज भी आत्मा की खोज और अपने अस्तित्त्व का मर्म समझने के लिये उपनिषदों का अध्ययन करते हैं। आधुनिक युग में लोग व्यक्तिगत विकास और मानसिक शान्ति के लिये उपनिषदों में बताये गये ध्यान और योग मार्ग को अपनाते हैं। उपनिषदों के सिद्धान्त जैसे सत्य, अहिंसा और करुणा आज भी नैतिकता और मानवता के मूलभूत स्तम्भ माने जाते हैं। ये सिद्धान्त न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाज और राष्ट्र के बीच आपसी सद्भाव और शान्ति स्थापित करने में सहायक है। उपनिषदों में प्रकृति और ब्रह्मांड के रहस्यों को जानने के लिए गहन विचार किया गया है। यह दृष्टिकोण आज के वैज्ञानिक अनुसन्धान से सम्बन्धित है। उपनिषद् का संदेश किसी एक धर्म, संस्कृति या जाति तक सीमित नहीं है। इनका संदेश सार्वभौमिक है और हर समय समाज के लिए प्रासंगिक है। आधुनिक युग में जहां वैश्वीकरण और सांस्कृतिक विविधता है वहां भी उपनिषद् के सिद्धान्त प्रासंगिक है। उपनिषदों में मनुष्य की गरिमा और समानता का विचार प्रस्तुत किया गया है। आज के समाज में जाति, वर्ग, और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभाव को दूर करने में उपनिषदों के सिद्धान्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इनकी शिक्षाएं समयातीत हैं और आज के जटिल जीवन में मार्गदर्शन प्रदान करती हैं।

Authors and Affiliations

डॉ. सुजीत कुमार
असि. प्रोफसर, संस्कृत -विभाग, कर्मक्षेत्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत।

सगुण-निर्गुण, नैतिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, धार्मिक, वसुधैव कुटुम्बकम्, वैश्वीकरण, विश्वबन्धुत्व, दम्यत्, दत्त, दयध्वम्, श्रेयश्च, ब्रह्माण्ड, सांस्कृतिक, प्रेयश्च, करुणा, मानवता, अहिंसा, औपाधिक, समयातीत, राष्ट्रियता, अखण्डता, सौहार्द, सांसारिक, मोक्ष, सत्य, धर्म, प्रकृति, वैज्ञानिक, विविधता, अनुसन्धान, प्रासंगिकता , परमतत्त्व, अद्वैततत्त्व, राजनीतिक, सर्जक, पालक, संहारक, अक्षर, अजर, अमर, एकेश्वरवाद, प्रतीकात्मक, विवेक - अविवेक, ग्राह्य, त्याज्य, सहिष्णुता ।

  1. वैदिक साहित्य एवं संस्कृति–डॉ.कपिलदेव द्विवेदी-विश्व विद्यालय प्रकाशन वाराणसी।
  2. संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास–डॉ.कपिलदेव द्विवेदी-रामनारायणलाल, विजयकुमार, कटरा इलाहाबाद।
  3. संस्कृत साहित्य का इतिहास- उमाशंकर शर्मा ऋषि-चौखम्भा भारती अकादमी वाराणसी।
  4. वैदिक सूक्त संग्रह–डॉ. विजय शंकर पाण्डेय-अक्षयवट प्रकाशन इलाहाबाद।
  5. ईशावास्योपनिषद्–डॉ. तारणीश झा-रामनारायणलाल,बेनी माधव प्रकाशक, इलाहाबाद।
  6. कठोपनिषद्- प्रो.आद्या प्रसाद मिश्र-अक्षयवट प्रकाशन इलाहाबाद ।
  7. श्रीमद्भगवद्गीता-प्रो.आद्या प्रसाद मिश्र-अक्षयवट प्रकाशन इलाहाबाद ।
  8. बृहदारण्योपनिषद्-गीता प्रेस गोरखपुर।
  9. तैत्तिरीयोपनिषद्-गीता प्रेस गोरखपुर ।
  10. कठोपनिषद्–डॉ.रघुवीर वेदालंकार,वेदाचार्य-चौखम्भा ओरियन्टालिया प्राच्य-विद्या, आयुर्वेद एवं दुर्लभ ग्रन्थों के प्रकाशक दिल्ली।
  11. भारतीय दर्शन आलोचन एवं अनुशीलन-चंद्रधर शर्मा-मोतीलाल बनारसीदास पब्लिशर्स प्रा.लि.दिल्ली ।
  12. भारतीय दर्शन की समीक्षात्मक रूपरेखा- राममूर्ति पाठक-अभिमन्यु प्रकाशन इलाहाबाद ।
  13. भारतीय दर्शन-श्री सतीशचन्द्र चट्टोपाध्याय एवं श्री धीरेन्द्र मोहन दत्त - पुस्तक भण्डार पब्लिशिंग हाउस, पटना।

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 2 | March-April 2022
Date of Publication : 2022-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 153-158
Manuscript Number : GISRRJ225340
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. सुजीत कुमार, "उपनिषदों की समसामयिक उपादेयता ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 2, pp.153-158, March-April.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ225340

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