Manuscript Number : GISRRJ22542
उपनिषदों में वाक् तत्त्व का स्वरूप
Authors(1) :-डॉ. भोला नाथ उपनिषद् ऋषियों ने वाक् को ज्ञान के साधन के रूप में देखा है। जो दीपक की तरह अर्थ को प्रकाशित करती है और स्वयं भी प्रकाशित होती है। भर्तृहरि वाक् को एक तत्त्व के रूप में देखते है तथा पश्यन्ती, मध्यमा, बैखरी रूप वाक् को तीन स्तरों में विभाजित करते हैं। वाणी सीमित अर्थ को प्रकाशित कर सकती है लेकिन असीमित ब्रह्म को प्रकाशित नहीं कर सकती है। इस प्रकार वाक् तत्त्व प्रकाश का ही दूसरा रूप सिद्ध होती है। उपनिषद् ऋषि वाक् को अचेतन तो भर्तृहरि ने शब्द को ब्रह्म कहकर चेतन रूप माना है। भर्तृहरि के अनुसार शब्दब्रह्म रूप परावाक् से चेतनवत् होकर हो पश्यन्ती आदि वाक् विषय को प्रकाशित करती हैं।
डॉ. भोला नाथ उपनिषद्, वाक्, पश्यन्ती, वेदान्तसार, ब्रह्म, प्रश्नोपनिषद्, वाक्यपदीय आदि। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 4 | July-August 2022 Article Preview
असि.प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, गनपत सहाय पी.जी. कालेज, सुल्तानपुर, उ.प्र., भारत।
Date of Publication : 2022-08-04
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Page(s) : 15-18
Manuscript Number : GISRRJ22542
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ22542