उपनिषदों में वाक् तत्त्व का स्वरूप

Authors(1) :-डॉ. भोला नाथ

उपनिषद् ऋषियों ने वाक् को ज्ञान के साधन के रूप में देखा है। जो दीपक की तरह अर्थ को प्रकाशित करती है और स्वयं भी प्रकाशित होती है। भर्तृहरि वाक् को एक तत्त्व के रूप में देखते है तथा पश्यन्ती, मध्यमा, बैखरी रूप वाक् को तीन स्तरों में विभाजित करते हैं। वाणी सीमित अर्थ को प्रकाशित कर सकती है लेकिन असीमित ब्रह्म को प्रकाशित नहीं कर सकती है। इस प्रकार वाक् तत्त्व प्रकाश का ही दूसरा रूप सिद्ध होती है। उपनिषद् ऋषि वाक् को अचेतन तो भर्तृहरि ने शब्द को ब्रह्म कहकर चेतन रूप माना है। भर्तृहरि के अनुसार शब्दब्रह्म रूप परावाक् से चेतनवत् होकर हो पश्यन्ती आदि वाक् विषय को प्रकाशित करती हैं।

Authors and Affiliations

डॉ. भोला नाथ
असि.प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, गनपत सहाय पी.जी. कालेज, सुल्तानपुर, उ.प्र., भारत।

उपनिषद्, वाक्, पश्यन्ती, वेदान्तसार, ब्रह्म, प्रश्नोपनिषद्, वाक्यपदीय आदि।

  1. सांख्यकारिका-22, आचार्य जगन्नाथ शास्त्री, मोतीलाल बनारसी दास, संस्करण-5
  2. वाक्यपदीय, ब्रह्मकाण्ड, कारिका-133
  3. जैन दर्शन
  4. वेदान्तसार-1, सदानंद, व्याख्याकार- आद्याप्रसाद मिश्र, अक्षयवट प्रकाशन, इलाहाबाद
  5. केनोपनिषद्, शान्ति मंत्र
  6. केनोपनिषद्-1.4
  7. पाणिनीय शिक्षा, श्लोक -6
  8. केनोपनिषद्, खण्ड3-4
  9. केनोपनिषद्4
  10. वेदान्तसार-1
  11. ईशावास्य उपनिषद्, ओशो, पीडीएफ, पृष्ठ-3
  12. प्रश्नोपनिषद्-2.4
  13. मुण्डकोपनिषद्1.4
  14. मुण्डकोपनिषद्2.2

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 4 | July-August 2022
Date of Publication : 2022-08-04
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 15-18
Manuscript Number : GISRRJ22542
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

डॉ. भोला नाथ, "उपनिषदों में वाक् तत्त्व का स्वरूप ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 4, pp.15-18, July-August.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ22542

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