द्वादशाहयज्ञस्य वैज्ञानिकताविधिश्च

Authors(1) :-Manish Kumar Dubey

यागोऽयं सोमयागस्य भागः, अस्यापि अहीनसत्रात्मकभेदेन द्विधा विभजते । यज्ञस्यास्य साङ्गोपाङ्गसहित कस्मिन् दिने किं द्रव्यं स्यात्, कति ऋत्विजः. कोऽस्य अधिकारी, कति यजमानाः, का दक्षिणा इत्यादीनां संक्षेपेण वर्णनं वर्तते । यद्यपि यागविषयोऽयं बहुचर्चितो वर्तते, तथापि यथाधिया कात्यायनश्रौतसूत्रमनुसृत्य यागस्य विभागपुरःसरं निरूपणम् अभिधातो मया ।

Authors and Affiliations

Manish Kumar Dubey
Assistant Professor, Mahatma Gandhi P.G. College, Fatehpur, U.P.

द्वादशाहयज्ञ:, ऋत्विजः, यजमानाः, ज्ञानराशि:, तप:, अङ्गीनः।

  1. मनुस्मृतिः,श्रीकुल्लूकभट्टप्रणीत मन्वर्थमुक्तावली टीकासहित, सम्पादकौ श्रीहरगोविन्दशास्त्रि-गोपालशास्त्रिणौ च,प्रकाशकः चौखम्भा संस्कृत भवन,वाराणसी221001
  2. वैदिक साहित्य एवं संस्कृति, डा0 कपिलदेव द्विवेदी, प्रकाशक,विश्वविद्यालय प्रकाशन, चौक वाराणसी
  3. श्रीमद्भगवद्गीता शाङ्करभाष्य ,गीताप्रेस गोरखपुर273005
  4. कर्मकाण्ड का रहस्य, लेखक श्रीहरिशंकर जोशी,प्रकाशक- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय प्रेस
  5. ईशादि नौ उपनिषद् ,गीताप्रेस गोरखपुर273005
  6. सिद्धान्त कौमुदी ,श्रीमद्भट्टोजिदिक्षत,चौखम्भा संस्कृत भवन,वाराणसी221001

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 5 | September-October 2022
Date of Publication : 2022-09-15
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 138-144
Manuscript Number : GISRRJ225626
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

Manish Kumar Dubey , "द्वादशाहयज्ञस्य वैज्ञानिकताविधिश्च", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 5, pp.138-144, September-October.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ225626

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नाटक में रसाभिव्यक्तिः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन

Authors(1) :-Manish Kumar Dubey ऋतु वर्मा

सर्वप्रथम भरत मुनि ने अपने आकर-ग्रन्थ नाट्य-शास्त्र में 36 अध्यायों में नाटय-शास्त्र का प्रमाणिक और विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है। नाटय-शास्त्र का महत्व बताते हुए उनका कथन है कि विश्व का ऐसा कोई ज्ञान, शिल्प, विद्या, कला, योग (प्रयोग) और कर्म नहीं है, जो इसमें न आ जाता हो। न तज्ज्ञानं न तच्छिल्यं न सा विद्या न सा कला। नासौ योगो न तत्कर्म नाटयेऽस्मिन् यत्र दृश्यते।। (ना0-1-116) संस्कृत के काव्यशास्त्रियों ने काव्य को दो भागों में विभक्त किया हैः- (1) दृश्य, (2) श्रव्य। दृश्यश्रव्यत्वभेदेन पुनः काव्यं द्विधा मतम् दृश्यं तत्राभिनेयं तद्रूपारोपात्तु रूपकम्।। (सा0 द0 6-1)

Authors and Affiliations

ऋतु वर्मा
(एम ए, नेट संस्कृत) शोध छात्रा, संस्कृत विभाग, शिब्ली नेशनल पी0 जी0 कॉलेज, आजमगढ़।

नाटक, रसाभिव्यक्ति, ज्ञान, शिल्प, विद्या,कला, योग, कर्म, पारिभाषिक शब्द।

  1. संस्कृत साहित्य का समीक्षात्मक इतिहास डाॅ कपिलदवे द्विवेदी
  2. नाट्यशास्त्र-भरतमुनि चैखम्भा प्रकाशन वाराणसी
  3. नाट्यशास्त्रीय परम्परा तथा दसरूपक ज्ञानदेवी श्रीवास्तव, शिव पब्लिशर्स इलाहाबाद
  4. साहित्यदर्पण- विश्वनाथ, मोतीलाल बनारसीदास दिल्ली
  5. धनंजय कृत दसरूपक साहित्य भण्डार मेरठ

Publication Details

Published in : Volume 5 | Issue 6 | November-December 2022
Date of Publication : 2022-12-20
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 145-153
Manuscript Number : GISRRJ225626
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

ऋतु वर्मा, "नाटक में रसाभिव्यक्तिः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 5, Issue 6, pp.145-153, November-December.2022
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ225626

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