Manuscript Number : GISRRJ225626
नाटक में रसाभिव्यक्तिः एक विश्लेषणात्मक अध्ययन
Authors(1) :-ऋतु वर्मा सर्वप्रथम भरत मुनि ने अपने आकर-ग्रन्थ नाट्य-शास्त्र में 36 अध्यायों में नाटय-शास्त्र का प्रमाणिक और विस्तृत विवेचन प्रस्तुत किया है। नाटय-शास्त्र का महत्व बताते हुए उनका कथन है कि विश्व का ऐसा कोई ज्ञान, शिल्प, विद्या, कला, योग (प्रयोग) और कर्म नहीं है, जो इसमें न आ जाता हो।
न तज्ज्ञानं न तच्छिल्यं न सा विद्या न सा कला।
नासौ योगो न तत्कर्म नाटयेऽस्मिन् यत्र दृश्यते।। (ना0-1-116)
संस्कृत के काव्यशास्त्रियों ने काव्य को दो भागों में विभक्त किया हैः-
(1) दृश्य, (2) श्रव्य।
दृश्यश्रव्यत्वभेदेन पुनः काव्यं द्विधा मतम्
दृश्यं तत्राभिनेयं तद्रूपारोपात्तु रूपकम्।। (सा0 द0 6-1)
ऋतु वर्मा नाटक, रसाभिव्यक्ति, ज्ञान, शिल्प, विद्या,कला, योग, कर्म, पारिभाषिक शब्द। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 6 | November-December 2022 Article Preview
(एम ए, नेट संस्कृत) शोध छात्रा, संस्कृत विभाग, शिब्ली नेशनल पी0 जी0 कॉलेज, आजमगढ़।
Date of Publication : 2022-12-20
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Page(s) : 145-153
Manuscript Number : GISRRJ225626
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ225626