Manuscript Number : GISRRJ236115
विद्यालयीन शिक्षण प्रणाली में योग शिक्षा
Authors(2) :-डॉ. समरजीत सिंह, अजय उनियाल
विद्यार्थी जीवन की समस्याओं के समाधान एवं उनकी निरंतर प्रगति में योग की भूमिका महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। महर्षि पतंजलि कृत यम, नियम आसन, प्रणायाम, एवं ध्यान का अभ्यास एवं हठ योग में वर्णित योगाभ्यास जो अनुकूल प्रभाव देता है, शिक्षा में लागू करना । इससे शरीर क्रियाशील, मन ऊर्जावान एवं बुद्धि तेज होती है। ऊर्जा का संर्वधन होकर सकारात्मक दिशा में क्रियान्वयन होता है। विद्यार्थी समाज की महत्त्वपूर्ण इकाई है। विद्यार्थी तभी पूर्णता को प्राप्त करता है जब वह शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्वस्थ हो। योग अनुशासन का आधार है। इस अनुशासन के अंतर्गत शरीर, मन, वाणी की अनावश्यक क्रियाओ पर नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। योग की क्रियाएँ व्यक्ति के चिंतन व व्यवहार श्रेष्ठ को बनाती हैं, शारीरिक स्वास्थ्य प्रदान करती हैं, मनोरोगों का निवारण करती है ,मानसिक असंतुलन को संतुलित व स्थिर करती हैं ,नकारात्मक विकारों का निष्कासन करती हैं और सकारात्मक भावों को उजागर करती हैं एवं अंत:स्तर की चेतना को जाग्रत करती हैं। योग बुरी विकृतियों को दूर एवं मन को मजबूत बनाने में सक्षम है तथा योग आसन शरीर को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली व मन में एकाग्रता एवं धैर्य को बढ़ाता है, जो कि आत्मविश्वास की नींव है। योग के अभ्यास से व्यक्ति रोग-मुक्त शरीर और तेज बुद्धि प्राप्त करने में सक्षम होता है।
डॉ. समरजीत सिंह विद्यार्थी, किशोर, ऊर्जा, बौद्धिक, मनोविज्ञान, योग। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023 Article Preview
सह-प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष, योग विभाग, सैम ग्लोबल विश्वविद्यालय, भोपाल (म.प्र.)
अजय उनियाल
शोधार्थी, पी.एच. डी . (योग), सैम ग्लोबल विश्वविद्यालय, भोपाल (म.प्र.)
Date of Publication : 2023-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 68-73
Manuscript Number : GISRRJ236115
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ236115