Manuscript Number : GISRRJ23653
समकालीन हिन्दी कविता और स्त्री-विमर्श
Authors(1) :-डॉ राकेश चंद्र साहित्य में स्त्री शब्द ऐसा शब्द है जिस पर बार-बार साहित्यकारों का ध्यान गया। स्त्री विमर्श का अर्थ है स्त्री को केन्द्र में रखते हुए स्त्री की सारी समस्याओं को साहित्य में स्थान देना तथा उन सभी समस्याओं के कारण और प्रकार जानकर उनके निराकरण के लिए उचित समाधान बताना। दूसरे शब्दों में हम ऐसा भी कह सकते हैं कि लैंगिक असमानता, अन्याय और शोषण के विरूद्ध स्त्री को स्वतन्त्रता, समानता के अवसर देना तथा शिक्षा, सम्पत्ति, कार्यस्थल, न्याय आदि में किसी भी प्रकार का भेदभाव न करना।
समकालीन हिन्दी कविता में स्त्री-विमर्श केन्द्र में रहा है। स्त्री-विमर्श के केन्द्र में होने के पीछे के कारण को राकेश कुमार के कथन से समझा जा सकता है-
"स्त्री विमर्श में उठने वाले सवाल महज स्त्रियों से जुड़े हुए ही नहीं हैं, अपितु उनमें हमें पितृसत्तात्मक समाज के दोहरे मापदण्ड़ों, पितृक मूल्यों, लिंगभेद की राजनीति और स्त्री उत्पीड़न के अन्तर्निहित कारणों को समझने की भी गहरी दृष्टि प्राप्त होती है।"
डॉ राकेश चंद्र Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 5 | September-October 2023 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, जे वी जैन कालेज, सहारनपुर , भारत।
Date of Publication : 2023-09-12
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 19-22
Manuscript Number : GISRRJ23653
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ23653