Manuscript Number : GISRRJ23656
भारत की उज्ज्वल ज्ञान परम्परा में गुरु-शिष्य सम्बन्ध की सार्थकता-तैत्तिरीयोपनिषद् के विशेष सन्दर्भ में
Authors(1) :-डाॅ0 ऋचा
तैत्तिरोयोपनिषद् में शिक्षित मानव के दैनिक जीवन के लिए आवश्यक सार सूत्र समाहित है। सच्चा स्वाध्याय मनुष्य की जीवन यात्रा के लिए प्रकाश स्तम्भ का कार्य करता है। गृहस्थाश्रम में प्रवेश के बाद उसके नवीन उत्तरदायित्व के निर्वहन पर भी स्नातक को जीवन के उदात्त आदर्शों के प्रति कृत संकल्प रहने तथा विषम परिस्थिति में भी आचार्य कुल में शिक्षित स्नातक अपने उत्कृष्ट आदर्शों का हित चिन्तन करते हुए स्वस्थ और सुन्दर जीवन के साथ ही समाज में ज्ञानार्जन में प्रयत्नशील रहते हुए हितचिन्तक की भूमिका का निर्वहन करने में समर्थ रहता है। प्रत्येक शिक्षित और प्रबुद्ध मनुष्य का कर्तव्य है कि वह समष्टि-दृष्टि और सर्वभूत-हित के आदर्शों के प्रकाश में वैयक्तिक जीवन का निर्वाह करे। ‘विद्या ददाति विनयम्’’ इस प्राचीन उक्ति के अनुसार विद्या के माधुर्य से समाज में शील और सदाचार की सृष्टि का संचार करते हुए विद्वानों के प्रति नम्रता और शिष्टता का आचरण करने हेतु कृत संकल्प रहें।
डाॅ0 ऋचा
सार्थकता, उज्ज्वल ज्ञान, गुरु-शिष्य, स्वाध्याय, उत्कृष्ट आदर्श, प्रयत्नशील। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 5 | September-October 2023 Article Preview
असिस्टेन्ट प्रोफेसर-संस्कृत, काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, ज्ञानपुर, भदोही।
Date of Publication : 2023-09-12
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 37-45
Manuscript Number : GISRRJ23656
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ23656