दलित जीवन संघर्ष एवं आत्मकथाएँ

Authors(1) :-कुमार सत्यम

दलित शब्द से तात्पर्य है एक ऐसा वर्ग जो शोषित, पीड़ित, दबा-कुचला, हीनता से ग्रस्त, जिसे समाज के तथाकथित उच्च वर्ग के बच्चे भी दलित वर्ग के बुजुर्गों को भी डाटने, फटकारने तथा गाली गलोज करने का पैतृक अधिकार लिये हो या यूँ कहे की जो समाज के हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर समाज के उपेक्षित हो। समय के साथ साथ दलितों की स्थिति निम्न से निम्नतर होती चली गयी। इनके साथ भेद-भाव का स्वरूप का और विस्तार होनेलगा। इनके लिये चलने के अलग रास्ते थे। इनके लिये अलग टोले-मुहल्ले हुआ करते थे। पारंपरिक साहित्य जो मुख्य रूप से अब तक मन्दिरों और राज सभाओं में फला-फूला, वहाँ दलित समुदाय का निषेध ही रहा। साहित्य का जनतांत्रिकरण का आरंभ आधुनिक काल में हुआ, जब साहित्य के केंद्र में नायकत्व के स्वरूप में परिवर्तन आया। आम जनजीवन और साधारण व्यक्ति आधुनिक काल में साहित्य लेखन के केंद्र में आया।

Authors and Affiliations

कुमार सत्यम
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर मधेपुरा, बिहार।

दलित साहित्य, समाज, आत्मकथाएं, हिंदी साहित्य, आत्मसंघर्ष ।

  1. दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र; ओमप्रकाश वाल्मीकि; पृष्ठ: 29
  2. जूठन; ओमप्रकाश वाल्मीकि, पृष्ठ 12
  3. अपने अपने पिंजरे-भाग 2; मोहनदास नैमिशराय; पृष्ठ 25
  4. मुर्दहिया; डॉ. तुलसी राम, पृष्ठ 13

Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024
Date of Publication : 2024-02-15
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 58-60
Manuscript Number : GISRRJ24723
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

कुमार सत्यम, "दलित जीवन संघर्ष एवं आत्मकथाएँ ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 7, Issue 1, pp.58-60, January-February.2024
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24723

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