Manuscript Number : GISRRJ24723
दलित जीवन संघर्ष एवं आत्मकथाएँ
Authors(1) :-कुमार सत्यम दलित शब्द से तात्पर्य है एक ऐसा वर्ग जो शोषित, पीड़ित, दबा-कुचला, हीनता से ग्रस्त, जिसे समाज के तथाकथित उच्च वर्ग के बच्चे भी दलित वर्ग के बुजुर्गों को भी डाटने, फटकारने तथा गाली गलोज करने का पैतृक अधिकार लिये हो या यूँ कहे की जो समाज के हाशिये पर जीवन जीने को मजबूर समाज के उपेक्षित हो। समय के साथ साथ दलितों की स्थिति निम्न से निम्नतर होती चली गयी। इनके साथ भेद-भाव का स्वरूप का और विस्तार होनेलगा। इनके लिये चलने के अलग रास्ते थे। इनके लिये अलग टोले-मुहल्ले हुआ करते थे। पारंपरिक साहित्य जो मुख्य रूप से अब तक मन्दिरों और राज सभाओं में फला-फूला, वहाँ दलित समुदाय का निषेध ही रहा। साहित्य का
जनतांत्रिकरण का आरंभ आधुनिक काल में हुआ, जब साहित्य के केंद्र में नायकत्व के स्वरूप में परिवर्तन आया। आम जनजीवन और साधारण व्यक्ति आधुनिक काल में साहित्य लेखन के केंद्र में आया।
कुमार सत्यम दलित साहित्य, समाज, आत्मकथाएं, हिंदी साहित्य, आत्मसंघर्ष । Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024 Article Preview
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, लालूनगर मधेपुरा, बिहार।
Date of Publication : 2024-02-15
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 58-60
Manuscript Number : GISRRJ24723
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24723