Manuscript Number : GISRRJ24725
ओमप्रकाश वाल्मीकि के कहानी संग्रह ‘सलाम’ में दलित समाज की अभिव्यक्ति
Authors(1) :-कमलेश राम ओमप्रकाश वाल्मीकि हिन्दी दलित साहित्य के प्रवर्तक हैं। वाल्मीकि की गहन मानवीय संवेदना एवं यथार्थपरक दृष्टि ने भारतीय समाज में शोषितों में भी अति शोषित, आर्थिक उत्पीड़न के साथ जातिगत उत्पीड़न से ग्रस्त दलित समाज की पीड़ी, छटपटाहट, वेदना, दरिद्रता आदि को अपनी कहानियों के माध्यम से समझने-समझाने का सफल प्रयास किया है। विषमतापूर्ण दलित जीवन तथा शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु उसमें हो रहे सकारात्मक परिवर्तन को भी कहानियों में परिलक्षित किया है, भले ही बदलाव की यह सुगबुगाहट धीमी गति से हो रही है। इनकी कहानियों में दलित जीवन और दलित समाज का व्यापक फलक चित्रित है। दलित विचारक रविकुमार गोंड लिखते हैं, “ओमप्रकाश वाल्मीकि कवि, आलोचक और समीक्षक के साथ एक बेहतरीन कथाकर भी थे। उनके द्वारा रचित कथाएँ केवल कल्पना में नहीं जीतीं बल्कि उनकी कल्पनाएँ मानव जीवन की सच्ची तस्वीर पेश करती नज़र आती हैं। वह भोग हुआ यथार्थ लिखते थे और यथार्थवादी दृष्टिकोण उनकी रचनाओं में स्पष्ट परिलक्षित होता है।
कमलेश राम दलित, शोषण, संत्रास, भोग्य, यथार्थ, पीड़ा, त्रासद, अपमान, घुटन, चिंता, बेबसी, द्वन्द्व, मानसिक, शारीरिक, चूहड़ा, वाल्मीकि, वंचित, उपेक्षा, तिरस्कार, कपट, छल, घृणा, कुंठा, अंधविश्वास, रूढ़िवादी मानसिकता, अनाचार, प्रताड़ित, आर्थिक, दैहिक, आकस्मिक इत्यादि। Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 2 | March-April 2024 Article Preview
पीएचडी शोधार्थी, हिंदी विभाग, वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2024-04-05
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 21-28
Manuscript Number : GISRRJ24725
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24725