Manuscript Number : GISRRJ24752
भारत में असंगठित क्षेत्र में कार्यरत महिलाओं के साथ सामाजिक लैंगिक असमानता का अध्ययन ( फर्रूखाबाद जिले के संदर्भ में)
Authors(2) :-Jitendra Pathak, Dr. Ranjeet Verma असंगठित क्षेत्र एक व्यापक क्षेत्र है जिसमें महिलाओं का बहुत बड़ा भाग एक उद्यमी के रूप में कार्यरत् है। परन्तु रोजगार के स्तर एंव गुणवत्ता की दृष्टि से वह संगठित क्षेत्रों में कार्यरत् महिलाओं से पीछे रह जाती है। भारत की कुल श्रम शक्ति का 86 प्रतिशत असंगठित क्षेत्र में कार्यशील है। जिसमें महिला श्रम की भागीदारी 65 प्रतिशत है। महिला श्रमिक कृषि, निर्माण कार्य, गृह उद्योग, कालीन बुनाई, जैसे असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत है। इन क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिक न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के संरक्षण से दूर है एवं शोषण का शिकार है। भारतीय संविधान में समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है लेकिन ग्रामीण एवं खासतौर पर असंगठित क्षेत्रों में इसका पालन नहीं होता है इन क्षेत्रों में मजबूर महिलांए सस्ती श्रमिक है। राष्ट्रीय स्तर पर श्रम प्रतिस्पर्धा में महिला भागीदारी 25.51 प्रतिशत है जो शहरी क्षेत्रों में 15.44 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों मे 30.2 प्रतिशत है। इसके बावजूद भी महिलाएं आर्थिक स्तर पर लैंगिक भेदभाव का शिकार है उन्हें पुरुषों के समान कार्य करने पर भी उनके समान वेतन नहीं दिया जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिला दैनिक मजदूरी 301/- रूपये है जबकि पुरूषों की 422/- रूपये है वहीं शहरी क्षेत्रों में महिला मजदूरी 366/- रूपये एवं पुरुषों की 469 रूपये हैं। महिलाओं को समान कार्य करने के बावजूद भी पुरुषों की अपेक्षा 30 से 40 प्रतिशत कम भुगतान किया जाता है। देश में महिला कर्मचारी को पुरूष की तुलना में औसतन 62 प्रतिशत वेतन मजदूरी कम प्राप्त होती है। संविधान के द्वारा महिलाओं के संदर्भ में भेदभाव की समाप्ति एवं समान अधिकार की बात कहीं गई है। लेकिन धरातल पर यह दिखाई नहीं देता है। चाहे घरेलू महिला हो या कामकामजी महिला दोनों ही आर्थिक स्तर पर लैंगिक भेदभाव का शिकार है जिसके पीछे मुख्य कारण रूढ़िवादी पारम्परिक सोच, पुरूष प्रधान समाज, लिंग आधारित शैक्षणिक असमानता, रोजगारोन्मुख शिक्षा प्रणाली का अभाव। असंगठित क्षेत्र में नियमों का उल्लंघन, अधिकारों के प्रति जागरूकता का अभाव, गरीबी, सवैधानिक प्रावधानों का निष्क्रिय क्रियान्वयन प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं। यदि महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण की ओर ध्यान दिया जाये एवं उनके विरूद्ध हो रहे आर्थिक भेदभाव को समाप्त कर दिया जाये तो भारत की जी. डी.पी. में 8 प्रतिशत तक का उछाल सम्भव है। महिलाओं को शिक्षित करने, उनके विरूद्ध रूढ़वादी सोच में परिवर्तन लाकर, असंगठित क्षेत्र में व्याप्त अनियमितताओं को समाप्त कर एवं विधियों का प्रभावी क्रियान्वयन कर हम महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त कर सकते है जो महिला सशक्तिकरण एवं राष्ट्रविकास के लिए परम आवश्यक है।
Jitendra Pathak असंगठित, कार्यशील, महिला, श्रमिक, लैंगिक असमानता आदि। Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 5 | September-October 2024 Article Preview
Assistant Professor, Sociology, Dr. Bhimrao Ambedkar Government College, Auden Padaria, Mainpuri, U.P. and Research Scholar, Sri Venkateshwara University, Gajraula Amroha U.P.
Dr. Ranjeet Verma
Assistant Professor, Department of Sociology, S B S PG COLLEGE, Mangalpur, Barabanki
Date of Publication : 2024-10-05
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 08-14
Manuscript Number : GISRRJ24752
Publisher : Technoscience Academy
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ24752