लोक साहित्य के विविध आयाम

Authors(1) :-अनुपम कुमार

लोक साहित्य जनमानस की चित्त वृत्तियों का प्रतिबिम्ब माना जाता है। यह आदिम मानव की मन मस्तिष्क की भावरूपी अभिव्यक्ति है जो वह दुःख-सुख, हर्ष-विषाद, मनोरंजन व ज्ञान की प्राप्ति के लिये करता आया है। लोक साहित्य शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है- लोक और साहित्य। लोक का अर्थ है, जनमानस और साहित्य का अर्थ है उस सामान्य जनमानस की सुख-दुःखात्मक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति। लोक साहित्य उस दर्पण की तरह होता है जिसमें सामान्य जनता का सम्पूर्ण और सर्वांगीण प्रतिबिम्ब प्रदर्शित होता है। लोक साहित्य में लोक संस्कृति का जैसा प्रतिबिम्ब उपलब्ध होता है उसका दर्शन अन्यत्र नहीं होता। लोक साहित्य का सानिध्य पाकर जन समूह मन, आत्मा को पवित्र बना लेता है। भारतीय साहित्य में लोक शब्द का प्रयोग कई अर्थांे में प्राप्त होता है। ऋग्वेद में प्रथमतः स्थान के अर्थ में लोक शब्द का प्रयोग किया गया है। इसके पश्चात् के साहित्य में लोक शब्द जन समुदाय के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। लोक शब्द के स्पष्टीकरण के पश्चात् लोक साहित्य के अर्थ पर यदि दृष्टिपात किया जाए तो लोक साहित्य वह साहित्य है जो सामान्य जन द्वारा, सामान्य जन के लिए, सामान्य भावभूमि पर लिखा जाता है। लोक साहित्य समस्त समाज से दूर रहने वाली, निरक्षर या अल्प शिक्षित जनता की सुख-दुःख, जीवन-मरण, हानि-लाभ की अभिव्यंजना वाली साहित्यिक गतिविधि या कृति है जो वह भावावेश में प्रस्तुत करता है। इस साहित्य का रचयिता अज्ञात व्यक्ति होता है। प्रारम्भिक लोक साहित्य में जन साधारण अपना अंश जोड़ता जाता है और इस जुड़ाव से लोक साहित्य शाश्वत रूप से गतिमान बना रहता है। लोक साहित्य लोक मानस का साहित्य होता है। यह लोक मानस वाला जनसमुदाय सभ्यता की सीमा से बाहर होता है। यह जन मानस आदिम परम्पराओं को सुरक्षित रखता है। यह साहित्य सम्पूर्ण मानव जाति की विरासत है। लोक साहित्य में सम्पूर्ण जनता के कल्याण की भावना समाहित होती है। यह लोक के मनोरंजन के लिए लिखा जाता है। यह मौखिक परम्परा से ही प्राप्त होता है। यह वास्तव में कृति न होकर श्रुति है। इसमें व्याकरणिक नियमों की बाध्यता नहीं रहती है। लोक साहित्य, लोक विश्वास, परम्पराओं, प्रथाओं, त्योहारों तथा रीति-रिवाजों से सम्बन्धित साहित्य माना जाता है। अस्तु यह कहा जा सकता है कि साधारण जनता जिन शब्दों में अपने मनोभावों को गाकर, रोकर, हंसकर, खेलकर प्रकट करती है वह सब लोक साहित्य के अन्तर्गत समाहित होता है।

Authors and Affiliations

अनुपम कुमार
असि. प्रोफेसर-हिन्दी, के.के. कालेज, इटावा, उत्तर प्रदेष।

साहित्य, प्रकृति, लोकोक्ति, परंपरा, सुभाषित, प्रतिबिंब, पहेलियां, मुहावरे, समुदाय, सौंदर्य, भावना, आस्था, औपचारिक, अभिव्यंजना, श्रृंखला, आडंबर, आचरण, आयाम, ग्रामीण, वैज्ञानिक।

  1. उपाध्याय, डाॅ. कृष्णदेव, लोक साहित्य की भूमिका
  2. डाॅ. सत्येन्द्र, लोक साहित्य विज्ञान
  3. त्रिपाठी, डा. रामनरेश, सोहर
  4. त्रिपाठी, डा. रामनरेश, कविता कौमुदी (भाग-5) (ग्राम गीत)
  5. इण्टरनेट

Publication Details

Published in : Volume 8 | Issue 2 | March-April 2025
Date of Publication : 2025-03-25
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 62-67
Manuscript Number : GISRRJ25837
Publisher : Technoscience Academy

ISSN : 2582-0095

Cite This Article :

अनुपम कुमार, "लोक साहित्य के विविध आयाम ", Gyanshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (GISRRJ), ISSN : 2582-0095, Volume 8, Issue 2, pp.62-67, March-April.2025
URL : https://gisrrj.com/GISRRJ25837

Article Preview